इस सूत्र को पढ़ने से पहले, धर्म के कुछ मूल और आवश्यक शब्दों को समझ लेना उपयोगी होगा — “पवारणा, दुर्वचो, और सुवचो”।
पवारणा का सरल अर्थ है — “आमंत्रण”। मनुष्य अनेक प्रकार से दूसरों को आमंत्रित करता है, लेकिन धर्म में यह शब्द दो स्तरों पर विशेष महत्व रखता है — सामाजिक और आध्यात्मिक।
सामाजिक स्तर पर, कोई उपासक या उपासिका किसी संन्यासी या भिक्षु को यह कहकर आमंत्रित करता है कि — “यदि आपको किसी चीज़ की आवश्यकता हो, तो कृपया बताएं।” यह विनम्र आग्रह, उस संयमित जीवन की सेवा कर पुण्य कमाना है जो संन्यासी अपनाता है।
लेकिन आध्यात्मिक स्तर पर जो आमंत्रण है, वह आज बौद्ध परंपरा में लगभग विस्मृत हो चुका है। एक समय यह परंपरा अत्यंत स्वस्थ, उदार, और आवश्यक मानी जाती थी। उसमें कोई साधक, स्वयं को दूसरों के लिए खुला करता था — “यदि मेरे आचरण में कोई दोष, खोट, या त्रुटि दिखाई दे, तो कृपया बताएं, जिससे मैं उसे जानकर सुधार सकूं।”
भगवान चेताते थे कि जब कोई व्यक्ति उल्लंघन कर के भी उसे ‘गलत’ न माने, तो वह उस समय मिथ्यादृष्टि और अहंकार में फँसा होकर, मूर्खता, मूढ़ता, और अकुशलता धारण किए होता है। आत्मवंचना में जी रहा ऐसा व्यक्ति, दुर्गति और दुःखों की ओर बढ़ता है।
लेकिन, उसके विपरीत, जो व्यक्ति अपने दोष को वास्तव में दोष माने, उसे स्वीकार करे, और सुधार की दिशा में कदम उठाए — वह उस समय सम्यकदृष्टि प्राप्त करता है। वह अहंकार से मुक्त, विनम्र होकर, प्रगति-पथ पर अग्रसर होता है।
भगवान कहते थे: “हाँ, वाकई, तुमने उल्लंघन कर अपराध किया है, जो इतने मूर्खता-वश, मूढ़ता-वश, अकुशलता-वश, (फलाना-फलाना) पाप किया। किन्तु चूँकि तुम उस उल्लंघन को ‘अपराध’ मानते हो, और धर्मानुसार उसे सुधारते हो — इसलिए हम इसे स्वीकार करते हैं। क्योंकि, आर्यधर्म में यही प्रगति है कि कोई अपने दोष को दोष माने, और भविष्य में धर्मानुसार सँवर कर रहे।”
भिक्षुओं में यह परंपरा आज भी जीवित है। वर्षावास के अंतिम उपोसथ में, सभी भिक्षु संघ के सामने, एक-एक कर के यह औपचारिक पवारणा करते हैं: “मैं आयुष्मानों को आमंत्रित करता हूँ — यदि आपने मेरे किसी आचरण में दोष देखा हो, सुना हो, या आपको शंका हो — तो कृपया बताएं। यदि मुझे वह दोष समझ में आया, तो मैं उसे सुधारूँगा।”
यह कोई बीते समय की परंपरा नहीं है। आज भी कोई साधक, इस आत्मविकास की पथप्रदर्शक रीति को अपना सकता है। आप भी किसी उपयुक्त अवसर पर अपने माता-पिता, वरिष्ठजनों, सच्चे मित्रों या विवेकी व्यक्तियों से कह सकते हैं, “यदि मेरे आचरण में कोई त्रुटि हो, तो कृपया बताएं।”
जब वे कुछ कहें, तो उसे धैर्य, शांति, और विनम्रता से सुनें, और बस कहें, “ठीक है, इस पर विचार करूँगा।” यदि सोच-विचार के बाद उनकी बात में सच्चाई दिखे, तो उस दोष को सुधारने का प्रयास करें।
अब, बात उन दो गुणों की — दुर्वचो और सुवचो, जिनके दूर के अर्थ हैं, अवज्ञाकारी और आज्ञाकारी।
दुर्वचो वह होता है, जिससे कुछ कहना कठिन हो जाता है। ऐसे लोग सुनते नहीं, आलोचना सहन नहीं करते, और बात-बात में उग्र हो जाते हैं। वे अहंकार से भरे होते हैं, और इसी कारण लोग उनसे कुछ कहने से कतराते हैं। लेकिन पीठ पीछे, उनकी निंदा, भर्त्सना, और उपेक्षा होती है।
इसके विपरीत, सुवचो वह होता है, जिससे कुछ भी कहना सरल हो। जो दूसरों की बात धैर्य और विनम्रता से सुनता है — यहाँ तक कि आलोचना, कटु सत्य, या अपमान भी सह लेता है, और फिर भी मैत्रीपूर्ण चित्त बनाए रखता है। ऐसे व्यक्ति का सम्मान उसके पीठ पीछे भी बना रहता है।
धर्म का सच्चा साधक वही होता है, जो समय-समय पर “पवारणा” करता है, जो “सुवचो” होता है, और जो अपनी भूलों को स्वीकारता है, सुधारता है और भविष्य में सँवर करता है।
आईयें, अब संघ के महा-अग्रश्रावक, आयुष्मान महामोग्गल्लान भंते का उपदेश सुनें।
ऐसा मैंने सुना — एक समय आयुष्मान महामोग्गल्लान भग्गों के साथ मगरमच्छ पर्वत के भेसकला मृगवन में 1 विहार कर रहे थे। वहाँ आयुष्मान महामोग्गल्लान ने भिक्षुओं को संबोधित किया, “मित्र, भिक्षुओं!”
“मित्र!” भिक्षुओं ने आयुष्मान महामोग्गल्लान को उत्तर दिया।
आयुष्मान महामोग्गल्लान ने कहा —
“मित्रों, कोई भिक्षु आमंत्रित करता है, ‘आयुष्मानों, मुझे (दोष) बताओं! आयुष्मानों, मुझे बोलों!’ — किन्तु वह दुर्वचो होता है, दुर्वचनीय स्वभाव से युक्त होता है। वह असहनशील होता है, (विनय) अनुशासन को सम्मान से ग्रहण नहीं करता। तब उसके सब्रह्मचारी (=भिक्षु साथी) न उसे चेताने लायक समझते हैं, न ही अनुशासन के लायक। ऐसा व्यक्ति उनका विश्वास प्राप्त नहीं करता। 2
और, मित्रों, दुर्वचनीय स्वभाव क्या है?
ऐसा होता है, मित्रों, कोई भिक्षु पाप-इच्छुक होता है, पाप इच्छाओं के वश चले जाता है। भिक्षु का पापेच्छुक होना, पाप इच्छाओं के वश चले जाना — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, मित्रों, कोई भिक्षु स्वयं को श्रेष्ठ मानता है, और दूसरे को हीन… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी होता है, क्रोध से अभिभूत होता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी होता है, क्रोध के मारे शत्रुतापूर्ण (=प्रतिशोध की भावना वाला) हो जाता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी होता है, क्रोध के मारे जिद पकड़ता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी होता है, क्रोध से बोलने लगता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर फटकारने वाले पर आक्षेप लेता (=अस्वीकार करता) है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर फटकारने वाले की अवमानना करता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर फटकारने वाले को (करारा) जवाब देता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर टालमटोल करता है, दूसरी बात पर ध्यान भटकाता है, या कोप, द्वेष, और कड़वाहट दिखाता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर अपने कृत्य पर स्पष्टीकरण नहीं देता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु तिरस्कारी और प्रतिरोधी होता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु ईर्ष्यालु और कंजूस होता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु ठग और धोखेबाज होता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु अकड़ू और अहंकारी होता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु अपने ही मान्यताओं को पकड़ने वाला, दुराग्रही, न छोड़ने वाला होता है… — यह स्वभाव उसे दुर्वचनीय बनाता है।
— मित्रों, इन्हें दुर्वचनीय स्वभाव कहते हैं।
“मित्रों, कोई भिक्षु आमंत्रित नहीं करता, ‘आयुष्मानों, मुझे बताओं! आयुष्मानों, मुझे बोलों!’ — किन्तु वह सुवचो होता है, सुवचनीय स्वभाव से युक्त होता है। वह सहनशील होता है, अनुशासन को सम्मान से ग्रहण करता है। तब उसके सब्रह्मचारी उसे चेताने लायक समझते हैं, अनुशासन के लायक समझते हैं। ऐसा व्यक्ति उनका विश्वास प्राप्त करता है।
और, मित्रों, सुवचनीय स्वभाव क्या है?
ऐसा होता है, मित्रों, कोई भिक्षु पाप-इच्छुक नहीं होता है, पाप इच्छाओं के वश नहीं चले जाता। भिक्षु का पापेच्छुक न होना, पाप इच्छाओं के वश न चले जाना — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, मित्रों, कोई भिक्षु स्वयं को श्रेष्ठ नहीं मानता है, न ही दूसरे को हीन… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी नहीं होता है, क्रोध से अभिभूत नहीं होता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी नहीं होता है, क्रोध के मारे शत्रुतापूर्ण नहीं हो जाता… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी नहीं होता है, क्रोध के मारे जिद नहीं पकड़ता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु क्रोधी नहीं होता है, क्रोध से बोलने नहीं लगता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर फटकारने वाले पर आक्षेप नहीं लेता (=स्वीकार करता) है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर फटकारने वाले की अवमानना नहीं करता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर फटकारने वाले को जवाब नहीं देता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर टालमटोल नहीं करता है, दूसरी बात पर ध्यान नहीं भटकाता है, या कोप, द्वेष, और कड़वाहट नहीं दिखाता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु फटकारे जाने पर अपने कृत्य पर स्पष्टीकरण देता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु तिरस्कारी और प्रतिरोधी नहीं होता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु ईर्ष्यालु और कंजूस नहीं होता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु ठग और धोखेबाज नहीं होता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु अकड़ू और अहंकारी नहीं होता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
आगे, कोई भिक्षु अपने ही मान्यताओं को न पकड़ने वाला, दुराग्रही नहीं होता, बल्कि जल्द ही छोड़ने वाला होता है… — यह स्वभाव उसे सुवचनीय बनाता है।
— मित्रों, इन्हें सुवचनीय स्वभाव कहते हैं।
जब ऐसा हो, मित्रों, तब भिक्षु को अपने आप को तोल कर देखना चाहिए, “यह व्यक्ति पाप-इच्छुक है, पाप इच्छाओं के वश चले जाता है। तब यह व्यक्ति मेरे लिए अप्रिय और नापसंद है। अब, यदि मैं भी पाप-इच्छुक बन, पाप इच्छाओं के वश चले जाऊँ, तो मैं दूसरों के लिए अप्रिय और नापसंद होंगा। ऐसा जान कर, मित्रों, भिक्षु ऐसा चित्त उत्पन्न करता है, “मैं पाप-इच्छुक नहीं बनूँगा, पाप इच्छाओं के वश नहीं जाऊँगा!”
आगे, मित्रों, भिक्षु को अपने आप को तोलकर देखना चाहिए, “यह व्यक्ति —
— तब यह व्यक्ति मेरे लिए अप्रिय और नापसंद है। अब, यदि मैं भी मान्यताओं को पकड़ने वाला, दुराग्रही, न छोड़ने वाला बन जाऊँ, तो मैं दूसरों के लिए अप्रिय और नापसंद होंगा। ऐसा जान कर, मित्रों, भिक्षु ऐसा चित्त उत्पन्न करता है, “मैं मान्यताओं को न पकड़ने वाला, अ-दुराग्रही, जल्द छोड़ने वाला बनूँगा!”
जब ऐसा हो, मित्रों, तब भिक्षु को अपने आप को जाँच कर देखना चाहिए, “क्या मैं पाप-इच्छुक हूँ, पाप इच्छाओं के वश चले जाता हूँ?” यदि उसे जाँचने पर पता चले, “हाँ, मैं पाप-इच्छुक हूँ, पाप इच्छाओं के वश चले जाता हूँ” — तब उस भिक्षु को उन पाप अकुशल स्वभाव को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। और, यदि उसे जाँचने पर पता चले, “नहीं, मैं पाप-इच्छुक नहीं हूँ, पाप इच्छाओं के वश चले नहीं जाता” — तब उस भिक्षु को उन कुशल स्वभावों में रात-दिन सीखते हुए, प्रफुल्लता और प्रसन्नता पूर्वक विहार करना चाहिए।
आगे, मित्रों, भिक्षु को अपने आप को जाँच कर देखना चाहिए, “क्या मैं —
यदि उसे जाँचने पर पता चले, “हाँ, मैं अपने ही मान्यताओं को पकड़ने वाला, दुराग्रही, न छोड़ने वाला हूँ” — तब उस भिक्षु को उन पाप अकुशल स्वभाव को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। और, यदि उसे जाँचने पर पता चले, “नहीं, मैं अपने ही मान्यताओं को पकड़ने वाला, दुराग्रही, छोड़ने वाला नहीं हूँ” — तब उस भिक्षु को उन कुशल स्वभावों में रात-दिन सीखते हुए, प्रफुल्लता और प्रसन्नता पूर्वक विहार करना चाहिए।
यदि ऐसा हो, मित्रों, भिक्षु को जाँचने पर दिखायी दे कि ‘मैंने सभी पाप अकुशल स्वभावों को नहीं छोड़ा है’ — तब उस भिक्षु को उन पाप अकुशल स्वभाव को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। और, यदि उसे जाँचने पर दिखायी दे कि ‘मैंने सभी पाप अकुशल स्वभावों को छोड़ दिया है’ — तब उस भिक्षु को उन कुशल स्वभावों में रात-दिन सीखते हुए, प्रफुल्लता और प्रसन्नता पूर्वक विहार करना चाहिए।
जैसे, मित्रों, कोई स्त्री या पुरुष, तरुण और युवा, सजने के शौकीन हो, जो अपना प्रतिबिंब परिशुद्ध और चमकीले दर्पण में, या स्वच्छ जलपात्र में देखते हो। यदि उन्हें धूल या दाग दिखे तो वे हटाने का प्रयास करेंगे। किन्तु, यदि उन्हें कोई धूल या दाग न दिखे, तो हर्षित होंगे, ‘भाग्यशाली हूँ मैं! परिशुद्ध हूँ मैं!’
उसी तरह, मित्रों, भिक्षु को जाँचने पर दिखायी दे कि ‘मैंने सभी पाप अकुशल स्वभावों को नहीं छोड़ा है’ — तब उस भिक्षु को उन पाप अकुशल स्वभाव को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। और, यदि उसे जाँचने पर दिखायी दे कि ‘मैंने सभी पाप अकुशल स्वभावों को छोड़ दिया है’ — तब उस भिक्षु को उन कुशल स्वभावों में रात-दिन सीखते हुए, प्रफुल्लता और प्रसन्नता पूर्वक विहार करना चाहिए।”
आयुष्मान महामोग्गल्लान ने ऐसा कहा। हर्षित होकर भिक्षुओं ने आयुष्मान महामोग्गल्लान के कथन का अभिनंदन किया।
भग्ग वंशी गणराज्य एकांतवासी गणराज्य था, जो यमुना के दक्षिण में वच्छों के और गंगा के उत्तर में कोशलों के बीच स्थित था। भगवान बुद्ध के समय तक, यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भग्ग वंशी ‘वच्छ’ गणराज्य के अधीन हो चुके थे। “सुसुमारगिरि” नाम उस राजधानी नगर का था। यह नाम कुछ रहस्यमय प्रतीत होता है, क्योंकि वह भूभाग विशेष रूप से समतल है, केवल एक पर्वत-सा स्थल छोड़कर, जिसे आज “पभोस” (या “प्रभासगिरि” अथवा “रोहितगिरि”) कहा जाता है, जहाँ वर्तमान में एक जैन मंदिर स्थित है। संभव है कि यह पर्वत नदी से देखने पर मगरमच्छ के आकार जैसा प्रतीत होता हो। तथापि, अट्ठकथा में ऐसा कहा गया है कि नगर की स्थापना के समय पास के एक सरोवर में एक मगरमच्छ ने ज़ोर-ज़ोर से शब्द किया था, इसी कारण उस नगर का नाम “सुसुमारगिरि” पड़ा। ↩︎
यह भिक्षु विनय के “संघादिसेस १२” का एक तरह से सूत्र-संबंधी रूप है। यह नियम उस स्थिति के लिए है जब कोई भिक्षु इतना अकड़ू या उद्दंड हो जाए कि उसे समझाना या सुधारना मुश्किल हो जाए। यह दोष “चन्न” नामक भिक्षु पर डाला गया था, जो पहले कथित रूप से भगवान बुद्ध के सारथी थे। वे घमंड से कहते थे – “बुद्ध मेरे हैं, धर्म मेरा है! तुम कौन हो समझाने वाले?”
संघादिसेस का यह नियम भी उन्हें सुधारने में सफल नहीं हुआ। तब बुद्ध ने अपने अंतिम समय में उनके लिए एक विशेष दंड का आदेश दिया – जिसे ब्रह्मदण्ड कहा गया। इसका मतलब था, अब कोई उससे बात भी न करे। इस बहिष्कार को सबसे बड़ा धार्मिक दंड माना जाता है। इस ब्रह्मदण्ड को सुनते ही चन्न बेहोश हो गए। और जब होश लौटा, तो बिलकुल पूरी तरह से। कुछ ही दिनों में, उद्दंड चन्न शर्मिंदा होकर अत्यधिक प्रयास करते हुए अरहंत हो गए। अरहंत होने के साथ ही, उन पर लगा ब्रह्मदण्ड खत्म हुआ। ↩︎
१८१. एवं मे सुतं – एकं समयं आयस्मा महामोग्गल्लानो भग्गेसु विहरति सुसुमारगिरे सुंसुमारगिरे (सी॰ स्या॰ पी॰) भेसकळावने मिगदाये। तत्र खो आयस्मा महामोग्गल्लानो भिक्खू आमन्तेसि – ‘‘आवुसो, भिक्खवो’’ति। ‘‘आवुसो’’ति खो ते भिक्खू आयस्मतो महामोग्गल्लानस्स पच्चस्सोसुं। आयस्मा महामोग्गल्लानो एतदवोच –
‘‘पवारेति चेपि, आवुसो, भिक्खु – ‘वदन्तु मं आयस्मन्तो, वचनीयोम्हि आयस्मन्तेही’ति, सो च होति दुब्बचो, दोवचस्सकरणेहि धम्मेहि समन्नागतो, अक्खमो अप्पदक्खिणग्गाही अनुसासनिं, अथ खो नं सब्रह्मचारी न चेव वत्तब्बं मञ्ञन्ति, न च अनुसासितब्बं मञ्ञन्ति, न च तस्मिं पुग्गले विस्सासं आपज्जितब्बं मञ्ञन्ति।
‘‘कतमे चावुसो, दोवचस्सकरणा धम्मा? इधावुसो, भिक्खु पापिच्छो होति, पापिकानं इच्छानं वसं गतो। यम्पावुसो, भिक्खु पापिच्छो होति, पापिकानं इच्छानं वसं गतो – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु अत्तुक्कंसको होति परवम्भी। यम्पावुसो, भिक्खु अत्तुक्कंसको होति परवम्भी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधाभिभूतो। यम्पावुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधाभिभूतो – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो , भिक्खु कोधनो होति कोधहेतु उपनाही। यम्पावुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधहेतु उपनाही – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधहेतु अभिसङ्गी। यम्पावुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधहेतु अभिसङ्गी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधसामन्ता कोधसामन्तं (स्या॰ पी॰ क॰) वाचं निच्छारेता। यम्पावुसो, भिक्खु कोधनो होति कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चुदितो (सी॰ स्या॰ पी॰) चोदकेन चोदकं पटिप्फरति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं पटिप्फरति – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं अपसादेति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं अपसादेति – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं , आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकस्स पच्चारोपेति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकस्स पच्चारोपेति – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन अञ्ञेनञ्ञं पटिचरति, बहिद्धा कथं अपनामेति, कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन अञ्ञेनञ्ञं पटिचरति, बहिद्धा कथं अपनामेति, कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोति – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन अपदाने न सम्पायति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन अपदाने न सम्पायति – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु मक्खी होति पळासी। यम्पावुसो, भिक्खु मक्खी होति पळासी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु इस्सुकी होति मच्छरी। यम्पावुसो, भिक्खु इस्सुकी होति मच्छरी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु सठो होति मायावी। यम्पावुसो, भिक्खु सठो होति मायावी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु थद्धो होति अतिमानी। यम्पावुसो, भिक्खु थद्धो होति अतिमानी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु सन्दिट्ठिपरामासी होति आधानग्गाही दुप्पटिनिस्सग्गी। यम्पावुसो, भिक्खु सन्दिट्ठिपरामासी होति आधानग्गाही दुप्पटिनिस्सग्गी – अयम्पि धम्मो दोवचस्सकरणो। इमे वुच्चन्तावुसो, दोवचस्सकरणा धम्मा।
१८२. ‘‘नो चेपि, आवुसो, भिक्खु पवारेति – ‘वदन्तु मं आयस्मन्तो, वचनीयोम्हि आयस्मन्तेही’ति, सो च होति सुवचो, सोवचस्सकरणेहि धम्मेहि समन्नागतो, खमो पदक्खिणग्गाही अनुसासनिं, अथ खो नं सब्रह्मचारी वत्तब्बञ्चेव मञ्ञन्ति, अनुसासितब्बञ्च मञ्ञन्ति, तस्मिञ्च पुग्गले विस्सासं आपज्जितब्बं मञ्ञन्ति।
‘‘कतमे चावुसो, सोवचस्सकरणा धम्मा? इधावुसो, भिक्खु न पापिच्छो होति, न पापिकानं इच्छानं वसं गतो। यम्पावुसो, भिक्खु न पापिच्छो होति न पापिकानं इच्छानं वसं गतो – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु अनत्तुक्कंसको होति अपरवम्भी। यम्पावुसो, भिक्खु अनत्तुक्कंसको होति अपरवम्भी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधाभिभूतो। यम्पावुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधाभिभूतो – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधहेतु उपनाही। यम्पावुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधहेतु उपनाही – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधहेतु अभिसङ्गी। यम्पावुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधहेतु अभिसङ्गी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु न कोधनो होति न कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता। यम्पावुसो , भिक्खु न कोधनो होति न कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं नप्पटिप्फरति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं नप्पटिप्फरति – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो ।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं न अपसादेति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकं न अपसादेति – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकस्स न पच्चारोपेति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन चोदकस्स न पच्चारोपेति – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन न अञ्ञेनञ्ञं पटिचरति, न बहिद्धा कथं अपनामेति, न कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन न अञ्ञेनञ्ञं पटिचरति, न बहिद्धा कथं अपनामेति, न कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोति – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन अपदाने सम्पायति। यम्पावुसो, भिक्खु चोदितो चोदकेन अपदाने सम्पायति – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु अमक्खी होति अपळासी। यम्पावुसो, भिक्खु अमक्खी होति अपळासी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु अनिस्सुकी होति अमच्छरी। यम्पावुसो, भिक्खु अनिस्सुकी होति अमच्छरी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु असठो होति अमायावी। यम्पावुसो, भिक्खु असठो होति अमायावी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु अत्थद्धो होति अनतिमानी। यम्पावुसो, भिक्खु अत्थद्धो होति अनतिमानी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खु असन्दिट्ठिपरामासी होति अनाधानग्गाही सुप्पटिनिस्सग्गी। यम्पावुसो, भिक्खु असन्दिट्ठिपरामासी होति, अनाधानग्गाही सुप्पटिनिस्सग्गी – अयम्पि धम्मो सोवचस्सकरणो। इमे वुच्चन्तावुसो, सोवचस्सकरणा धम्मा।
१८३. ‘‘तत्रावुसो , भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं अनुमिनितब्बं अनुमानितब्बं (सी॰) – ‘यो ख्वायं पुग्गलो पापिच्छो, पापिकानं इच्छानं वसं गतो, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं पापिच्छो पापिकानं इच्छानं वसं गतो, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘न पापिच्छो भविस्सामि, न पापिकानं इच्छानं वसं गतो’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो अत्तुक्कंसको परवम्भी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं अत्तुक्कंसको परवम्भी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘अनत्तुक्कंसको भविस्सामि अपरवम्भी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो कोधनो कोधाभिभूतो, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो। अहञ्चेव खो पनस्सं कोधनो कोधाभिभूतो, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘न कोधनो भविस्सामि न कोधाभिभूतो’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो कोधनो कोधहेतु उपनाही, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं कोधनो कोधहेतु उपनाही, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘न कोधनो भविस्सामि न कोधहेतु उपनाही’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो कोधनो कोधहेतु अभिसङ्गी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं कोधनो कोधहेतु अभिसङ्गी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘न कोधनो भविस्सामि न कोधहेतु अभिसङ्गी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो कोधनो कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं कोधनो कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘न कोधनो भविस्सामि न कोधसामन्ता वाचं निच्छारेस्सामी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो चोदितो चोदकेन चोदकं पटिप्फरति, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पन चोदितो चोदकेन चोदकं पटिप्फरेय्यं , अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘चोदितो चोदकेन चोदकं नप्पटिप्फरिस्सामी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो चोदितो चोदकेन चोदकं अपसादेति, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पन चोदितो चोदकेन चोदकं अपसादेय्यं, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘चोदितो चोदकेन चोदकं न अपसादेस्सामी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो चोदितो चोदकेन चोदकस्स पच्चारोपेति, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पन चोदितो चोदकेन चोदकस्स पच्चारोपेय्यं, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘चोदितो चोदकेन चोदकस्स न पच्चारोपेस्सामी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो चोदितो चोदकेन अञ्ञेनञ्ञं पटिचरति, बहिद्धा कथं अपनामेति, कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोति, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पन चोदितो चोदकेन अञ्ञेनञ्ञं पटिचरेय्यं, बहिद्धा कथं अपनामेय्यं , कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरेय्यं, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘चोदितो चोदकेन न अञ्ञेनञ्ञं पटिचरिस्सामि, न बहिद्धा कथं अपनामेस्सामि, न कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरिस्सामी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो चोदितो चोदकेन अपदाने न सम्पायति, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पन चोदितो चोदकेन अपदाने न सम्पायेय्यं, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘चोदितो चोदकेन अपदाने सम्पायिस्सामी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो मक्खी पळासी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं मक्खी पळासी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘अमक्खी भविस्सामि अपळासी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो इस्सुकी मच्छरी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं इस्सुकी मच्छरी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘अनिस्सुकी भविस्सामि अमच्छरी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो सठो मायावी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं सठो मायावी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘असठो भविस्सामि अमायावी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो थद्धो अतिमानी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं थद्धो अतिमानी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘अत्थद्धो भविस्सामि अनतिमानी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
‘‘‘यो ख्वायं पुग्गलो सन्दिट्ठिपरामासी आधानग्गाही दुप्पटिनिस्सग्गी, अयं मे पुग्गलो अप्पियो अमनापो; अहञ्चेव खो पनस्सं सन्दिट्ठिपरामासी आधानग्गाही दुप्पटिनिस्सग्गी, अहंपास्सं परेसं अप्पियो अमनापो’ति। एवं जानन्तेनावुसो, भिक्खुना ‘असन्दिट्ठिपरामासी भविस्सामि अनाधानग्गाही सुप्पटिनिस्सग्गी’ति चित्तं उप्पादेतब्बं।
१८४. ‘‘तत्रावुसो , भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि पापिच्छो, पापिकानं इच्छानं वसं गतो’ति? सचे, आवुसो , भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘पापिच्छो खोम्हि, पापिकानं इच्छानं वसं गतो’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘न खोम्हि पापिच्छो, न पापिकानं इच्छानं वसं गतो’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि अत्तुक्कंसको परवम्भी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘अत्तुक्कंसको खोम्हि परवम्भी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘अनत्तुक्कंसको खोम्हि अपरवम्भी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि कोधनो कोधाभिभूतो’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘कोधनो खोम्हि कोधाभिभूतो’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘न खोम्हि कोधनो कोधाभिभूतो’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि कोधनो कोधहेतु उपनाही’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति ‘कोधनो खोम्हि कोधहेतु उपनाही’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति ‘न खोम्हि कोधनो कोधहेतु उपनाही’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि कोधनो कोधहेतु अभिसङ्गी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘कोधनो खोम्हि कोधहेतु अभिसङ्गी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘न खोम्हि कोधनो कोधहेतु अभिसङ्गी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि कोधनो कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘कोधनो खोम्हि कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘न खोम्हि कोधनो कोधसामन्ता वाचं निच्छारेता’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि चोदितो चोदकेन चोदकं पटिप्फरामी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन चोदकं पटिप्फरामी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन चोदकं नप्पटिप्फरामी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि चोदितो चोदकेन चोदकं अपसादेमी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन चोदकं अपसादेमी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन चोदकं न अपसादेमी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि चोदितो चोदकेन चोदकस्स पच्चारोपेमी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन चोदकस्स पच्चारोपेमी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन चोदकस्स न पच्चारोपेमी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि चोदितो चोदकेन अञ्ञेनञ्ञं पटिचरामि, बहिद्धा कथं अपनामेमि, कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोमी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन अञ्ञेनञ्ञं पटिचरामि, बहिद्धा कथं अपनामेमि, कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोमी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन न अञ्ञेनञ्ञं पटिचरामि, न बहिद्धा कथं अपनामेमि, न कोपञ्च दोसञ्च अप्पच्चयञ्च पातुकरोमी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि चोदितो चोदकेन अपदाने न सम्पायामी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन अपदाने न सम्पायामी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘चोदितो खोम्हि चोदकेन अपदाने सम्पायामी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं , आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि मक्खी पळासी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘मक्खी खोम्हि पळासी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘अमक्खी खोम्हि अपळासी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि इस्सुकी मच्छरी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘इस्सुकी खोम्हि मच्छरी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘अनिस्सुकी खोम्हि अमच्छरी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि सठो मायावी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘सठो खोम्हि मायावी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘असठो खोम्हि अमायावी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि थद्धो अतिमानी’ति? सचे, आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘थद्धो खोम्हि अतिमानी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘अत्थद्धो खोम्हि अनतिमानी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘पुन चपरं, आवुसो, भिक्खुना अत्तनाव अत्तानं एवं पच्चवेक्खितब्बं – ‘किं नु खोम्हि सन्दिट्ठिपरामासी आधानग्गाही दुप्पटिनिस्सग्गी’ति? सचे, आवुसो , भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘सन्दिट्ठिपरामासी खोम्हि आधानग्गाही दुप्पटिनिस्सग्गी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेसंयेव पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो एवं जानाति – ‘असन्दिट्ठिपरामासी खोम्हि अनाधानग्गाही सुप्पटिनिस्सग्गी’ति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘सचे , आवुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो सब्बेपिमे पापके अकुसले धम्मे अप्पहीने अत्तनि समनुपस्सति, तेनावुसो, भिक्खुना सब्बेसंयेव इमेसं पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो सब्बेपिमे पापके अकुसले धम्मे पहीने अत्तनि समनुपस्सति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं, अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसु।
‘‘सेय्यथापि, आवुसो, इत्थी वा पुरिसो वा, दहरो युवा मण्डनजातिको, आदासे वा परिसुद्धे परियोदाते, अच्छे वा उदकपत्ते, सकं मुखनिमित्तं पच्चवेक्खमानो, सचे तत्थ पस्सति रजं वा अङ्गणं वा, तस्सेव रजस्स वा अङ्गणस्स वा पहानाय वायमति; नो चे तत्थ पस्सति रजं वा अङ्गणं वा, तेनेव अत्तमनो होति – ‘लाभा वत मे, परिसुद्धं वत मे’ति। एवमेव खो, आवुसो, सचे भिक्खु पच्चवेक्खमानो सब्बेपिमे पापके अकुसले धम्मे अप्पहीने अत्तनि समनुपस्सति, तेनावुसो, भिक्खुना सब्बेसंयेव इमेसं पापकानं अकुसलानं धम्मानं पहानाय वायमितब्बं। सचे पनावुसो, भिक्खु पच्चवेक्खमानो सब्बेपिमे पापके अकुसले धम्मे पहीने अत्तनि समनुपस्सति, तेनावुसो, भिक्खुना तेनेव पीतिपामोज्जेन विहातब्बं, अहोरत्तानुसिक्खिना कुसलेसु धम्मेसू’’ति।
इदमवोचायस्मा महामोग्गल्लानो। अत्तमना ते भिक्खू आयस्मतो महामोग्गल्लानस्स भासितं अभिनन्दुन्ति।
अनुमानसुत्तं निट्ठितं पञ्चमं।