नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

📜 बुद्धिमान चरवाहा

✦ ॥ नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ॥ ✦

Hindi

ऐसा मैंने सुना — एक समय भगवान वज्जियों के साथ गंगा नदी के किनारे उक्कचेला में विहार कर रहे थे। वहाँ भगवान ने भिक्षुओं से कहा, “भिक्षुओं!"

“भदंत”, भिक्षुओं ने भगवान को उत्तर दिया। भगवान ने कहा —

नासमझ चरवाहा

“बहुत पहले, भिक्षुओं, मगध में एक नासमझ चरवाहा रहता था। उसने वर्षाऋतु के अंतिम मास शरद के समय, गंगा के करीबी तट को बिना जाँचे, गंगा के दूर के तट को बिना देखे, गायों को अनुचित किनारे से सुविदेहा के उत्तरी किनारे की ओर उतार दिया। तब भिक्षुओं, गंगा नदी के मध्य प्रवाह में वे गायें घिर गयी, और वहीं उनका विनाश हुआ। ऐसा क्यों?

क्योंकि, भिक्षुओं, उस नासमझ चरवाहे ने वर्षाऋतु के अंतिम मास शरद के समय, गंगा के करीबी तट को बिना जाँचे, गंगा के दूर के तट को बिना देखे, गायों को अनुचित किनारे से सुविदेहा के उत्तरी किनारे की ओर उतार दिया था।

उसी तरह, भिक्षुओं, कोई श्रमण-ब्राह्मण इस लोक को लेकर अकुशल होते हैं, परलोक को लेकर अकुशल होता है, मार के प्रभुत्व को लेकर अकुशल होते हैं, अ-मार के प्रभुत्व को लेकर अकुशल होते हैं, मृत्यु के प्रभुत्व को लेकर अकुशल होते हैं, अमर्त्य के प्रभुत्व को लेकर अकुशल होते हैं। फिर भी, जो यह मानता है कि वे सुनने के योग्य हैं, श्रद्धा के योग्य हैं — वह दीर्घकाल तक उसके अहित और दुःख का कारण बनता है।

बुद्धिमान चरवाहा

बहुत पहले, भिक्षुओं, मगध में एक बुद्धिमान चरवाहा रहता था। उसने वर्षाऋतु के अंतिम मास शरद के समय, गंगा के करीबी तट को अच्छे से जाँच कर, गंगा के दूर के तट को अच्छे से देख कर, गायों को उचित किनारे से सुविदेहा के उत्तरी किनारे की ओर उतार दिया।

पहले उसने झुंड के वृषभ पिताओं, और अग्रिम बैलों को उतारा। वे गंगा के प्रवाह को काटते हुए, उसे लाँघ कर पार हो गए। फिर उसने बलवान गायों और सीधे स्वभाव की गायों को उतारा। वे भी गंगा के प्रवाह को काटते हुए, उसे लाँघ कर पार हो गए। फिर उसने जवान बछड़ों और बछड़ियों को उतारा। वे भी गंगा के प्रवाह को काटते हुए, उसे लाँघ कर पार हो गए। और तब उसने नन्हें और दुर्बल बछड़ों को उतारा। तब वे भी गंगा के प्रवाह को काटते हुए, उसे लाँघ कर पार हो गए।

एक नन्हा बछड़ा, भिक्षुओं, जो अभी-अभी पैदा हुआ था, वह भी अपने माँ गाय के पुकारने पर गंगा के प्रवाह को काटते हुए, उसे लाँघ कर पार हो गया। ऐसा क्यों?

क्योंकि, भिक्षुओं, उस बुद्धिमान चरवाहे ने गंगा के करीबी तट को अच्छे से जाँच कर, गंगा के दूर के तट को अच्छे से देख कर, गायों को उचित किनारे से, सुविदेहा के उत्तरी किनारे की ओर उतारा था।

उसी तरह, भिक्षुओं, कोई श्रमण-ब्राह्मण इस लोक को लेकर कुशल होते हैं, परलोक को लेकर कुशल होता है, मार के प्रभुत्व को लेकर कुशल होते हैं, अ-मार के प्रभुत्व को लेकर कुशल होते हैं, मृत्यु के प्रभुत्व को लेकर कुशल होते हैं, अमर्त्य के प्रभुत्व को लेकर कुशल होते हैं। और, जो यह मानता है कि वे सुनने के योग्य हैं, श्रद्धा के योग्य हैं — वह दीर्घकाल तक उसके हित और सुख का कारण बनता है।

झुंड का पार करना

जिस तरह, भिक्षुओं, झुंड के वृषभ पिताओं और अग्रिम बैलों ने गंगा के प्रवाह को काटते हुए, लाँघ कर पार किया — उसी तरह, भिक्षुओं, जिन भिक्षुओं ने अरहंत होकर आस्रव खत्म किया, ब्रह्मचर्य परिपूर्ण किया, कर्तव्य समाप्त किया, बोझ को नीचे रख दिया, परम-ध्येय प्राप्त किया, भव-बंधन को पूर्णतः तोड़ दिया, सम्यक-ज्ञान से विमुक्त हुए — उन्होंने मार के प्रवाह को काटते हुए लाँघ कर पार किया।

फिर, भिक्षुओं, जिस तरह बलवान गायों और सीधे स्वभाव की गायों ने गंगा के प्रवाह को काटते हुए, लाँघ कर पार किया — उसी तरह, भिक्षुओं, जिन भिक्षुओं ने निचले पाँच संयोजन को तोड़कर स्वप्रकट होकर वही (शुद्धवास ब्रह्मलोक में) परिनिर्वाण प्राप्त करेंगे, अब इस लोक में नहीं लौटेंगे — वे भी मार के प्रवाह को काटते हुए लाँघ कर पार करेंगे।

फिर, भिक्षुओं, जिस तरह जवान बछड़ों और बछड़ियों ने गंगा के प्रवाह को काटते हुए, लाँघ कर पार किया — उसी तरह, भिक्षुओं, जिन भिक्षुओं ने तीन संयोजन तोड़कर राग-द्वेष-मोह को दुर्बल कर सकृदागामी हुए, जो इस लोक में दुबारा लौटकर अपने दुःखों का अन्त करेंगे — वे भी मार के प्रवाह को काटते हुए लाँघ कर पार करेंगे।

फिर, भिक्षुओं, जिस तरह नन्हें और दुर्बल बछड़ों ने गंगा के प्रवाह को काटते हुए, लाँघ कर पार किया — उसी तरह, भिक्षुओं, जिन भिक्षुओं ने तीन संयोजन तोड़कर श्रोतापन्न हुए, अ-पतन स्वभाव के, निश्चित संबोधि की ओर अग्रसर — वे भी मार के प्रवाह को काटते हुए लाँघ कर पार करेंगे।

और, भिक्षुओं, जिस तरह एक नन्हा बछड़ा, जो अभी-अभी पैदा हुआ था, उसने भी अपने माँ गाय के पुकारने पर गंगा के प्रवाह को काटते हुए, उसे लाँघ कर पार किया — उसी तरह, भिक्षुओं, जो भिक्षु धम्मानुसारी और श्रद्धानुसारी 1 हैं — वे भी मार के प्रवाह को काटते हुए लाँघ कर पार करेंगे।

मैं, भिक्षुओं, इस लोक को लेकर कुशल हूँ, परलोक को लेकर कुशल हूँ, मार के प्रभुत्व को लेकर कुशल हूँ, अ-मार के प्रभुत्व को लेकर कुशल हूँ, मृत्यु के प्रभुत्व को लेकर कुशल हूँ, अमर्त्य के प्रभुत्व को लेकर कुशल हूँ। और, भिक्षुओं, जो यह मानता है कि मैं सुनने के योग्य हैं, श्रद्धा के योग्य हैं — वह दीर्घकाल तक उसके हित और सुख का कारण होगा।”

भगवान ने ऐसा कहा। ऐसा कहने पर, सुगत ने, शास्ता ने आगे कहा —

“इस लोक और परलोक को,
उजागर किया, जानता जो,
दूर, मार की पहुँच से,
जहाँ मृत्यु भी न पहुँच सके,
प्रत्यक्ष ज्ञान सभी लोक का,
सम्बुद्ध प्रज्ञा से हैं जानते।

खोल दिया द्वार अमृत का,
निर्वाण सुरक्षा प्राप्ति का।
पापी की धारा काट कर,
तोड़ दिया, विध्वंस किया।
अति प्रसन्न हों, भिक्षुओं,
बस ध्येय रखों सुरक्षा पाने का।”

सुत्र समाप्त।


  1. धम्मानुसारी और सद्धानुसारी के बारे में जानने के लिए हमारी शब्दावली पढ़ें। ↩︎

Pali

३५०. एवं मे सुतं – एकं समयं भगवा वज्जीसु विहरति उक्कचेलायं गङ्गाय नदिया तीरे. तत्र खो भगवा भिक्खू आमन्तेसि – ‘‘भिक्खवो’’ति. ‘‘भदन्ते’’ति ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं. भगवा एतदवोच –

‘‘भूतपुब्बं , भिक्खवे, मागधको गोपालको दुप्पञ्ञजातिको, वस्सानं पच्छिमे मासे सरदसमये, असमवेक्खित्वा गङ्गाय नदिया ओरिमं तीरं, असमवेक्खित्वा पारिमं तीरं, अतित्थेनेव गावो पतारेसि उत्तरं तीरं सुविदेहानं. अथ खो, भिक्खवे, गावो मज्झेगङ्गाय नदिया सोते आमण्डलियं करित्वा तत्थेव अनयब्यसनं आपज्जिंसु. तं किस्स हेतु? तथा हि सो, भिक्खवे, मागधको गोपालको दुप्पञ्ञजातिको, वस्सानं पच्छिमे मासे सरदसमये, असमवेक्खित्वा गङ्गाय नदिया ओरिमं तीरं, असमवेक्खित्वा पारिमं तीरं, अतित्थेनेव गावो पतारेसि उत्तरं तीरं सुविदेहानं. एवमेव खो, भिक्खवे, ये हि केचि [ये केचि (स्या. कं.)] समणा वा ब्राह्मणा वा अकुसला इमस्स लोकस्स अकुसला परस्स लोकस्स, अकुसला मारधेय्यस्स अकुसला अमारधेय्यस्स, अकुसला मच्चुधेय्यस्स अकुसला अमच्चुधेय्यस्स, तेसं ये सोतब्बं सद्दहातब्बं मञ्ञिस्सन्ति, तेसं तं भविस्सति दीघरत्तं अहिताय दुक्खाय.

३५१. ‘‘भूतपुब्बं, भिक्खवे, मागधको गोपालको सप्पञ्ञजातिको, वस्सानं पच्छिमे मासे सरदसमये, समवेक्खित्वा गङ्गाय नदिया ओरिमं तीरं, समवेक्खित्वा पारिमं तीरं, तित्थेनेव गावो पतारेसि उत्तरं तीरं सुविदेहानं. सो पठमं पतारेसि ये ते उसभा गोपितरो गोपरिणायका. ते तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु. अथापरे पतारेसि बलवगावो दम्मगावो. तेपि तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु. अथापरे पतारेसि वच्छतरे वच्छतरियो. तेपि तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु. अथापरे पतारेसि वच्छके किसाबलके [किसबलके (सी. स्या. पी.)]. तेपि तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु. भूतपुब्बं, भिक्खवे, वच्छको तरुणको तावदेव जातको मातुगोरवकेन वुय्हमानो, सोपि तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमासि. तं किस्स हेतु? तथा हि सो, भिक्खवे, मागधको गोपालको सप्पञ्ञजातिको , वस्सानं पच्छिमे मासे सरदसमये, समवेक्खित्वा गङ्गाय नदिया ओरिमं तीरं, समवेक्खित्वा पारिमं तीरं, तित्थेनेव गावो पतारेसि उत्तरं तीरं सुविदेहानं. एवमेव खो, भिक्खवे, ये हि केचि समणा वा ब्राह्मणा वा कुसला इमस्स लोकस्स कुसला परस्स लोकस्स, कुसला मारधेय्यस्स कुसला अमारधेय्यस्स, कुसला मच्चुधेय्यस्स कुसला अमच्चुधेय्यस्स, तेसं ये सोतब्बं सद्दहातब्बं मञ्ञिस्सन्ति, तेसं तं भविस्सति दीघरत्तं हिताय सुखाय.

३५२. ‘‘सेय्यथापि , भिक्खवे, ये ते उसभा गोपितरो गोपरिणायका ते तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु, एवमेव खो, भिक्खवे, ये ते भिक्खू अरहन्तो खीणासवा वुसितवन्तो कतकरणीया ओहितभारा अनुप्पत्तसदत्था परिक्खीणभवसंयोजना सम्मदञ्ञा विमुत्ता, ते तिरियं मारस्स सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं गता.

‘‘सेय्यथापि ते, भिक्खवे, बलवगावो दम्मगावो तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु, एवमेव खो, भिक्खवे, ये ते भिक्खू पञ्चन्नं ओरम्भागियानं संयोजनानं परिक्खया ओपपातिका तत्थ परिनिब्बायिनो अनावत्तिधम्मा तस्मा लोका, तेपि तिरियं मारस्स सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं गमिस्सन्ति.

‘‘सेय्यथापि ते, भिक्खवे, वच्छतरा वच्छतरियो तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु, एवमेव खो, भिक्खवे, ये ते भिक्खू तिण्णं संयोजनानं परिक्खया रागदोसमोहानं तनुत्ता सकदागामिनो सकिंदेव इमं लोकं आगन्त्वा दुक्खस्सन्तं करिस्सन्ति, तेपि तिरियं मारस्स सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं गमिस्सन्ति.

‘‘सेय्यथापि ते, भिक्खवे, वच्छका किसाबलका तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमंसु, एवमेव खो, भिक्खवे, ये ते भिक्खू तिण्णं संयोजनानं परिक्खया सोतापन्ना अविनिपातधम्मा नियता सम्बोधिपरायना, तेपि तिरियं मारस्स सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं गमिस्सन्ति.

‘‘सेय्यथापि सो, भिक्खवे, वच्छको तरुणको तावदेव जातको मातुगोरवकेन वुय्हमानो तिरियं गङ्गाय सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं अगमासि, एवमेव खो, भिक्खवे, ये ते भिक्खू धम्मानुसारिनो सद्धानुसारिनो, तेपि तिरियं मारस्स सोतं छेत्वा सोत्थिना पारं गमिस्सन्ति.

‘‘अहं खो पन, भिक्खवे, कुसलो इमस्स लोकस्स कुसलो परस्स लोकस्स, कुसलो मारधेय्यस्स कुसलो अमारधेय्यस्स, कुसलो मच्चुधेय्यस्स कुसलो अमच्चुधेय्यस्स. तस्स मय्हं, भिक्खवे, ये सोतब्बं सद्दहातब्बं मञ्ञिस्सन्ति, तेसं तं भविस्सति दीघरत्तं हिताय सुखाया’’ति.

इदमवोच भगवा. इदं वत्वा सुगतो अथापरं एतदवोच सत्था –

‘‘अयं लोको परो लोको, जानता सुप्पकासितो;

यञ्च मारेन सम्पत्तं, अप्पत्तं यञ्च मच्चुना.

‘‘सब्बं लोकं अभिञ्ञाय, सम्बुद्धेन पजानता;

विवटं अमतद्वारं, खेमं निब्बानपत्तिया.

‘‘छिन्नं पापिमतो सोतं, विद्धस्तं विनळीकतं;

पामोज्जबहुला होथ, खेमं पत्तत्थ [पत्थेथ (स्या. कं. क. अट्ठकथायं संवण्णेतब्बपाठो)] भिक्खवो’’ति.

चूळगोपालकसुत्तं निट्ठितं चतुत्थं.