नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

📜 गुरु को परखना

सूत्र परिचय

भगवान इस सुत्त में स्पष्ट करते हैं कि धर्म का मार्ग अंधविश्वास से मुक्त होना चाहिए। वे शिष्यों को न केवल सुनने, बल्कि खुद जाँचने, छानबीन करने और प्रमाण पर आधारित निष्कर्ष निकालने का निर्देश देते हैं। शिक्षक का काम है अपनी शिक्षाओं के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी होना, और शिष्य का कर्तव्य है बिना किसी भय और संकोच के सवाल करना।

यह सूत्र बताता है कि वास्तविक ज्ञान का साक्षात्कार तब तक नहीं होता, जब तक कोई गुरु की कड़ी छानबीन नहीं करता है। खुद से जाँच-पड़ताल करने की आत्म-निर्भरता ही मुक्ति का रास्ता है।

✦ ॥ नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ॥ ✦

Hindi

ऐसा मैंने सुना — एक समय भगवान श्रावस्ती में अनाथपिण्डक के जेतवन उद्यान में विहार कर रहे थे। वहाँ भगवान ने भिक्षुओं से कहा, “भिक्षुओं!”

“भदंत!”, भिक्षुओं ने भगवान को उत्तर दिया।

भगवान ने कहा —

“भिक्षुओं, विवेकशील भिक्षु, जो पराए का चित्त जान नहीं सकता, उसे तथागत की छानबीन कर समझना चाहिए कि ‘सम्यक सम्बुद्ध हैं अथवा नहीं।’"

“भंते, हमारा धर्म भगवान की नींव पर हैं, भगवान के मार्गदर्शन से हैं, भगवान के प्रति शरण से हैं। अच्छा होगा, भंते, जो भगवान ही इस कहे का अर्थ बताएँ। भगवान से सुनकर भिक्षुगण धारण करेंगे।”

“ठीक है, भिक्षुओं, ध्यान देकर गौर से सुनो, मैं बताता हूँ।”

“ठीक है, भंते।” भिक्षुओं ने भगवान को उत्तर दिया।

भगवान ने कहा —

“भिक्षुओं, विवेकशील भिक्षु, जो पराए का चित्त जान नहीं सकता, उसे तथागत की छानबीन — आँखों से दिखायी देती, और कानों से सुनायी पड़ती — दो बातों से करते हुए पता लगाना चाहिए कि — ‘क्या तथागत में कोई गंदी बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है, अथवा नहीं?’

उन्हें छानबीन करने पर पता चलता है — ‘तथागत में कोई गंदी बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती नहीं है।’

तब आगे, उन्हें और छानबीन कर पता लगाना चाहिए — ‘क्या तथागत में कोई मिलावट वाली बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है, अथवा नहीं?’

उन्हें छानबीन करने पर पता चलता है — ‘तथागत में कोई मिलावट वाली बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती नहीं है।’

तब आगे, उन्हें और छानबीन कर पता लगाना चाहिए — ‘क्या तथागत में कोई पवित्र बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है, अथवा नहीं?’

उन्हें छानबीन करने पर पता चलता है — ‘तथागत में पवित्र बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है।’

तब आगे, उन्हें और छानबीन कर पता लगाना चाहिए — ‘क्या यह आयुष्मान दीर्घकाल से कुशल धर्म प्राप्त है, अथवा बस अभी प्राप्त हुआ?’

उन्हें छानबीन करने पर पता चलता है — ‘दीर्घकाल से यह आयुष्मान कुशल धर्म प्राप्त है। बस अभी प्राप्त हुआ, ऐसा नहीं है।’

तब आगे, उन्हें और छानबीन कर पता लगाना चाहिए — ‘यशकिर्ति और ख्याति प्राप्त किए इस आयुष्मान भिक्षु में क्या कोई दुष्परिणाम पता चलता है?’ क्योंकि, भिक्षुओं, जब तक कोई भिक्षु यशकिर्ति और ख्याति प्राप्त नहीं करता, तब तक उसमें कोई दुष्परिणाम पता नहीं चलता। किन्तु, जब कोई भिक्षु यशकिर्ति और ख्याति प्राप्त करता है, तभी उसमें कोई दुष्परिणाम भी पता चलता है।

उन्हें छानबीन करने पर पता चलता है — ‘यशकिर्ति और ख्याति प्राप्त किए इस आयुष्मान भिक्षु में कोई दुष्परिणाम पता नहीं चलता है।’

तब आगे, उन्हें और छानबीन कर पता लगाना चाहिए — ‘क्या यह आयुष्मान बिना किसी भय से रुका है, अथवा किसी भय से रुका है? क्या राग का क्षय कर वीतरागी होने के कारण वह कामुकता में लिप्त नहीं होता?’

उन्हें छानबीन करने पर पता चलता है — ‘यह आयुष्मान बिना किसी भय से रुका है। किसी भय से रुका है, ऐसा नहीं है। वह राग का क्षय कर वीतरागी होने के कारण अब कामुकता में लिप्त नहीं होता।’

भिक्षुओं, यदि दूसरे उस भिक्षु से पूछे, ‘ऐसा आयुष्मान किस आधार पर, किस सबूत पर कहते हैं कि — ‘यह आयुष्मान बिना किसी भय से रुका है। किसी भय से रुका है, ऐसा नहीं है। वह राग का क्षय कर वीतरागी होने के कारण अब कामुकता में लिप्त नहीं होता’?

तब, भिक्षुओं, उचित उत्तर देते हुए, वह भिक्षु ऐसा उत्तर देगा, ‘क्योंकि जब वह आयुष्मान संघ में विहार करता है, या अकेला विहार करता है — (उसके आगे) कोई सुगत (=अच्छे मंज़िल की ओर बढ़ने वाले) होते हैं, तो कोई दुर्गत (=बुरे मंज़िल की ओर बढ़ने वाले) होते हैं; कोई समूह को अनुशासित करते हैं, तो कोई आमिष (=सांसारिक भोग) में लिप्त होते दिखायी देते हैं, तो कोई आमिष से निर्लिप्त रहते हैं — किन्तु तब भी वह आयुष्मान किसी को हीन नहीं देखता।’

साथ ही, मैंने भगवान के मुख से सुना है, भगवान के मुख से धारण किया है कि — ‘मैं बिना किसी भय से रुका हूँ। किसी भय से रुका, ऐसा नहीं है। मैं राग का क्षय कर वीतरागी होने के कारण अब कामुकता में लिप्त नहीं होता हूँ।’

आगे, भिक्षुओं, उन्हें स्वयं तथागत से आगे पूछना चाहिए — ‘क्या तथागत में कोई गंदी बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है, अथवा नहीं?’

उत्तर देते हुए, भिक्षुओं, तथागत ऐसा उत्तर देंगे — ‘तथागत में कोई गंदी बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती नहीं है।’

‘क्या तथागत में कोई मिलावट वाली बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है, अथवा नहीं?’

उत्तर देते हुए, भिक्षुओं, तथागत ऐसा उत्तर देंगे — ‘तथागत में कोई मिलावट वाली बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती नहीं है।’

‘क्या तथागत में कोई पवित्र बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है, अथवा नहीं?’

उत्तर देते हुए, भिक्षुओं, तथागत ऐसा उत्तर देंगे — ‘तथागत में पवित्र बात आँखों से दिखायी देती, या कानों से सुनायी पड़ती है। मैं उस (पवित्रता) का पथ हूँ, उसका परिसर हूँ, किन्तु उसी से बना नहीं हूँ।’

शिष्यों को धर्म सुनने के लिए, भिक्षुओं, इस तरह बात करने वाले अरहंत शास्ता के पास जाना चाहिए। तब शास्ता उन्हें ऊँचे से ऊँचा, और उत्तम से उत्तम धर्म बताते हैं, उसके काले और उजले प्रतिपक्षों के साथ। और, भिक्षुओं, जब शास्ता उन्हें ऊँचे से ऊँचा, और उत्तम से उत्तम धर्म बताते हैं, उसके काले और उजले प्रतिपक्षों के साथ, तब वे उस धर्म को प्रत्यक्ष जान कर धर्मानुसार निष्कर्ष पर पहुँचते हैं, शास्ता के प्रति आश्वस्त होते हैं — ‘भगवान ही सम्यक सम्बुद्ध हैं! भगवान का धर्म ही स्पष्ट बताया है! संघ ही सुमार्ग पर चलता है!’

भिक्षुओं, यदि दूसरे उस भिक्षु से पूछे, ‘ऐसा आयुष्मान किस आधार पर, किस सबूत पर कहते हैं कि — ‘भगवान ही सम्यक सम्बुद्ध हैं? भगवान का धर्म ही स्पष्ट बताया है? संघ ही सुमार्ग पर चलता है?’

तब, भिक्षुओं, उचित उत्तर देते हुए, वह भिक्षु ऐसा उत्तर देगा, ‘क्योंकि, मित्र, मैं भगवान के पास धर्म सुनने के लिए गया। तब भगवान ने मुझे ऊँचे से ऊँचा, और उत्तम से उत्तम धर्म बताया, उसके काले और उजले प्रतिपक्षों के साथ। तब मैं उस धर्म को प्रत्यक्ष जान कर धर्मानुसार निष्कर्ष पर पहुँचा, शास्ता के प्रति आश्वस्त हुआ कि — ‘भगवान ही सम्यक सम्बुद्ध हैं! भगवान का धर्म ही स्पष्ट बताया है! संघ ही सुमार्ग पर चलता है!’

भिक्षुओं, जब किसी की श्रद्धा इन शब्दों और वाक्यों के साथ इस आधार पर तथागत पर टिकती है, जड़ पकड़ती है, प्रतिष्ठित होती है, तब उसे ‘सबूत के आधार पर टिकी हुई श्रद्धा’ कहा जाता है। वह दृढ़ होती है, जिसे कोई श्रमण, या ब्राह्मण, या देव, या मार, या ब्रह्म, या इस लोक में कोई भी डिगा नहीं सकता।

यही, भिक्षुओं, तथागत की धर्मानुसार छानबीन है। इसी तरह, तथागत की धर्मानुसार छानबीन की जाती है।”

भगवान ने ऐसा कहा। हर्षित होकर भिक्षुओं ने भगवान की बात का अभिनंदन किया।

सुत्र समाप्त।

Pali

४८७. एवं मे सुतं – एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे. तत्र खो भगवा भिक्खू आमन्तेसि – ‘‘भिक्खवो’’ति. ‘‘भदन्ते’’ति ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं. भगवा एतदवोच – ‘‘वीमंसकेन, भिक्खवे, भिक्खुना परस्स चेतोपरियायं अजानन्तेन [आजानन्तेन (पी. क.), अजानन्तेन किन्ति (?)] तथागते समन्नेसना कातब्बा ‘सम्मासम्बुद्धो वा नो वा’ इति विञ्ञाणाया’’ति. ‘‘भगवंमूलका नो, भन्ते, धम्मा, भगवंनेत्तिका भगवंपटिसरणा; साधु वत, भन्ते, भगवन्तंयेव पटिभातु एतस्स भासितस्स अत्थो; भगवतो सुत्वा भिक्खू धारेस्सन्ती’’ति. ‘‘तेन हि, भिक्खवे, सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ, भासिस्सामी’’ति . ‘‘एवं, भन्ते’’ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं. भगवा एतदवोच –

४८८. ‘‘वीमंसकेन, भिक्खवे, भिक्खुना परस्स चेतोपरियायं अजानन्तेन द्वीसु धम्मेसु तथागतो समन्नेसितब्बो चक्खुसोतविञ्ञेय्येसु धम्मेसु – ‘ये संकिलिट्ठा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति वा ते तथागतस्स नो वा’ति? तमेनं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ये संकिलिट्ठा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, न ते तथागतस्स संविज्जन्ती’ति.

‘‘यतो नं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ये संकिलिट्ठा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, न ते तथागतस्स संविज्जन्ती’ति, ततो नं उत्तरिं समन्नेसति – ‘ये वीतिमिस्सा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति वा ते तथागतस्स नो वा’ति? तमेनं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ये वीतिमिस्सा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, न ते तथागतस्स संविज्जन्ती’ति.

‘‘यतो नं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ये वीतिमिस्सा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, न ते तथागतस्स संविज्जन्ती’ति, ततो नं उत्तरिं समन्नेसति – ‘ये वोदाता चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति वा ते तथागतस्स नो वा’ति? तमेनं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ये वोदाता चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति ते तथागतस्सा’ति.

‘‘यतो नं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ये वोदाता चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति ते तथागतस्सा’ति, ततो नं उत्तरिं समन्नेसति – ‘दीघरत्तं समापन्नो अयमायस्मा इमं कुसलं धम्मं, उदाहु इत्तरसमापन्नो’ति? तमेनं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘दीघरत्तं समापन्नो अयमायस्मा इमं कुसलं धम्मं, नायमायस्मा इत्तरसमापन्नो’ति.

‘‘यतो नं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘दीघरत्तं समापन्नो अयमायस्मा इमं कुसलं धम्मं, नायमायस्मा इत्तरसमापन्नो’ति, ततो नं उत्तरिं समन्नेसति – ‘ञत्तज्झापन्नो अयमायस्मा भिक्खु यसप्पत्तो, संविज्जन्तस्स इधेकच्चे आदीनवा’ति? न ताव, भिक्खवे, भिक्खुनो इधेकच्चे आदीनवा संविज्जन्ति याव न ञत्तज्झापन्नो होति यसप्पत्तो. यतो च खो, भिक्खवे, भिक्खु ञत्तज्झापन्नो होति यसप्पत्तो , अथस्स इधेकच्चे आदीनवा संविज्जन्ति. तमेनं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ञत्तज्झापन्नो अयमायस्मा भिक्खु यसप्पत्तो, नास्स इधेकच्चे आदीनवा संविज्जन्ती’ति.

‘‘यतो नं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘ञत्तज्झापन्नो अयमायस्मा भिक्खु यसप्पत्तो, नास्स इधेकच्चे आदीनवा संविज्जन्ती’ति, ततो नं उत्तरिं समन्नेसति – ‘अभयूपरतो अयमायस्मा, नायमायस्मा भयूपरतो; वीतरागत्ता कामे न सेवति खया रागस्सा’ति? तमेनं समन्नेसमानो एवं जानाति – ‘अभयूपरतो अयमायस्मा, नायमायस्मा भयूपरतो; वीतरागत्ता कामे न सेवति खया रागस्सा’ति. तञ्चे, भिक्खवे, भिक्खुं परे एवं पुच्छेय्युं – ‘के पनायस्मतो आकारा, के अन्वया, येनायस्मा एवं वदेसि – अभयूपरतो अयमायस्मा, नायमायस्मा भयूपरतो; वीतरागत्ता कामे न सेवति खया रागस्सा’ति. सम्मा ब्याकरमानो, भिक्खवे, भिक्खु एवं ब्याकरेय्य – ‘तथा हि पन अयमायस्मा सङ्घे वा विहरन्तो एको वा विहरन्तो, ये च तत्थ सुगता ये च तत्थ दुग्गता, ये च तत्थ गणमनुसासन्ति, ये च इधेकच्चे आमिसेसु संदिस्सन्ति, ये च इधेकच्चे आमिसेन अनुपलित्ता, नायमायस्मा तं तेन अवजानाति . सम्मुखा खो पन मेतं भगवतो सुतं सम्मुखा पटिग्गहितं – अभयूपरतोहमस्मि, नाहमस्मि भयूपरतो, वीतरागत्ता कामे न सेवामि खया रागस्सा’ति.

४८९. ‘‘तत्र , भिक्खवे, तथागतोव उत्तरिं पटिपुच्छितब्बो – ‘ये संकिलिट्ठा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति वा ते तथागतस्स नो वा’ति? ब्याकरमानो, भिक्खवे, तथागतो एवं ब्याकरेय्य – ‘ये संकिलिट्ठा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, न ते तथागतस्स संविज्जन्ती’’’ति.

‘‘ये वीतिमिस्सा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति वा ते तथागतस्स नो वाति? ब्याकरमानो, भिक्खवे, तथागतो एवं ब्याकरेय्य – ‘ये वीतिमिस्सा चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, न ते तथागतस्स संविज्जन्ती’ति.

‘‘ये वोदाता चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति वा ते तथागतस्स नो वाति? ब्याकरमानो, भिक्खवे, तथागतो एवं ब्याकरेय्य – ‘ये वोदाता चक्खुसोतविञ्ञेय्या धम्मा, संविज्जन्ति ते तथागतस्स; एतंपथोहमस्मि, एतंगोचरो [एतपथोहमस्मि एतगोचरो (सी. स्या. कं. पी.)], नो च तेन तम्मयो’ति.

‘‘एवंवादिं खो, भिक्खवे, सत्थारं अरहति सावको उपसङ्कमितुं धम्मस्सवनाय. तस्स सत्था धम्मं देसेति उत्तरुत्तरिं पणीतपणीतं कण्हसुक्कसप्पटिभागं. यथा यथा खो, भिक्खवे, भिक्खुनो सत्था धम्मं देसेति उत्तरुत्तरिं पणीतपणीतं कण्हसुक्कसप्पटिभागं तथा तथा सो तस्मिं धम्मे अभिञ्ञाय इधेकच्चं धम्मं धम्मेसु निट्ठं गच्छति, सत्थरि पसीदति – ‘सम्मासम्बुद्धो भगवा, स्वाक्खातो भगवता धम्मो, सुप्पटिपन्नो सङ्घो’ति. तञ्चे, भिक्खवे, भिक्खुं परे एवं पुच्छेय्युं – ‘के पनायस्मतो आकारा, के अन्वया, येनायस्मा एवं वदेसि – सम्मासम्बुद्धो भगवा , स्वाक्खातो भगवता धम्मो, सुप्पटिपन्नो सङ्घो’ति? सम्मा ब्याकरमानो, भिक्खवे, भिक्खु एवं ब्याकरेय्य – ‘इधाहं, आवुसो, येन भगवा तेनुपसङ्कमिं धम्मस्सवनाय. तस्स मे भगवा धम्मं देसेति उत्तरुत्तरिं पणीतपणीतं कण्हसुक्कसप्पटिभागं. यथा यथा मे, आवुसो , भगवा धम्मं देसेति उत्तरुत्तरिं पणीतपणीतं कण्हसुक्कसप्पटिभागं तथा तथाहं तस्मिं धम्मे अभिञ्ञाय इधेकच्चं धम्मं धम्मेसु निट्ठमगमं, सत्थरि पसीदिं – सम्मासम्बुद्धो भगवा, स्वाक्खातो भगवता, धम्मो, सुप्पटिपन्नो सङ्घो’ति.

४९०. ‘‘यस्स कस्सचि, भिक्खवे, इमेहि आकारेहि इमेहि पदेहि इमेहि ब्यञ्जनेहि तथागते सद्धा निविट्ठा होति मूलजाता पतिट्ठिता, अयं वुच्चति, भिक्खवे, आकारवती सद्धा दस्सनमूलिका, दळ्हा; असंहारिया समणेन वा ब्राह्मणेन वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मुना वा केनचि वा लोकस्मिं. एवं खो, भिक्खवे, तथागते धम्मसमन्नेसना होति. एवञ्च पन तथागतो धम्मतासुसमन्निट्ठो होती’’ति.

इदमवोच भगवा. अत्तमना ते भिक्खू भगवतो भासितं अभिनन्दुन्ति.

वीमंसकसुत्तं निट्ठितं सत्तमं.