नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

📜 अघोषित बातें

सूत्र परिचय

कई साधकों को दार्शनिक मान्यताओं में बहुत रुचि होती है। भले ही कोई मान्यता वाकई दुःखमुक्ति में सार्थक हो या अनर्थकारी, कुछ साधक अक्सर यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि संसार शाश्वत है, या अशाश्वत, आत्मा मृत्यु के बाद रहती है या नहीं, और तथागत मृत्यु के बाद होते हैं या नहीं।

इस सूत्र में भगवान एक ऐसे ही भिक्षु को संबोधित करते हैं, जो इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर जानने को अत्यंत व्याकुल था। वह यहाँ तक कहने लगा कि यदि ये प्रश्न नहीं सुलझाए गए, तो वह संन्यास त्याग देगा।

भगवान इस उपदेश में प्रसिद्ध ‘तीर’ की उपमा से समझाते हैं कि ऐसी अटकलबाज़ियाँ न तो दुःख के कारण को समाप्त करती हैं, न ही निर्वाण की ओर ले जाती हैं। जो प्रश्न व्यावहारिक मुक्ति में सहायक न हो, बल्कि बाधक हो, उन्हें छोड़ देना चाहिए। यह सूत्र साधना में प्रायोगिक दृष्टिकोण की महत्ता और व्यर्थ बौद्धिक जिज्ञासाओं को त्यागने की शिक्षा को उजागर करता है।

✦ ॥ नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ॥ ✦

Hindi

ऐसा मैंने सुना — एक समय भगवान श्रावस्ती में अनाथपिण्डक के जेतवन उद्यान में विहार कर रहे थे। तब आयुष्मान मालुक्यपुत्त 1 को अकेले एकांतवास में रहते हुए चित्त में इस तरह विचार उत्पन्न हुए, “भगवान ने जिन मान्यताओं को अघोषित (=अव्याकृत) रखा हैं, नीचे रख दिया हैं —

  • ‘लोक शाश्वत है।
  • या लोक अशाश्वत है।
  • लोक सीमित है।
  • या लोक अनन्त है।
  • जीव और शरीर एक हैं।
  • या जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं।
  • तथागत मरणोपरान्त (अस्तित्व में) होते हैं।
  • या तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं।
  • या तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी।
  • या तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं।’ 2

— ये सब भगवान घोषित नहीं करते हैं। चूँकि भगवान ये सब घोषित नहीं करते हैं, तो मुझे वैसा पसंद नहीं आता है। मुझे यह स्वीकृत नहीं है। मैं भगवान के पास जाऊँगा और इसके बारे में पूछूंगा। यदि भगवान मेरे आगे घोषित करें कि ‘लोक शाश्वत है’ या लोक अशाश्वत है… या ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं’ — तभी मैं भगवान के ब्रह्मचर्य पालन करूँगा। यदि भगवान मेरे आगे घोषित न करें, तब मैं उनकी शिक्षा को त्याग कर हीन जीवन में लौट जाऊँगा।”

भगवान से पूछना

तब आयुष्मान मालुक्यपुत्त सायंकाल होने पर एकांतवास से निकल कर भगवान के पास गए। जाकर भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गए। एक ओर बैठकर आयुष्मान मालुक्यपुत्त ने भगवान से सब कुछ कह दिया, “भंते, मुझे अकेले एकांतवास में रहते हुए चित्त में इस तरह विचार उत्पन्न हुए, ‘भगवान ने जिन मान्यताओं को अघोषित रखा हैं, नीचे रख दिया हैं — ‘लोक शाश्वत है, या लोक अशाश्वत है… ये सब भगवान घोषित नहीं करते हैं। चूँकि भगवान ये सब घोषित नहीं करते हैं, तो मुझे वैसा पसंद नहीं आता है, मुझे यह स्वीकृत नहीं है। मैं भगवान के पास जाऊँगा और इसके बारे में पूछूंगा। यदि भगवान मेरे आगे घोषित करें… तभी मैं भगवान के ब्रह्मचर्य पालन करूँगा। यदि भगवान मेरे आगे घोषित न करें, तब मैं उनकी शिक्षा को त्याग कर हीन जीवन में लौट जाऊँगा।’

यदि भगवान जानते हो कि ‘लोक शाश्वत है’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘लोक शाश्वत है।’ यदि भगवान जानते हो कि ‘लोक अशाश्वत है’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘लोक अशाश्वत है।’ यदि भगवान नहीं जानते हो कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’ — तो न जानने पर, न देखने पर ऐसा सीधा-सीधा बोल दें कि ‘मैं नहीं जानता हूँ, नहीं देखता हूँ।’

यदि भगवान जानते हो कि ‘लोक सीमित है’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘लोक सीमित है।’ यदि भगवान जानते हो कि ‘लोक अनन्त है’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘लोक अनन्त है।’ यदि भगवान नहीं जानते हो कि ‘लोक सीमित है’ या ‘लोक अनन्त है’ — तो न जानने पर, न देखने पर ऐसा सीधा-सीधा बोल दें कि ‘मैं नहीं जानता हूँ, नहीं देखता हूँ।’

यदि भगवान जानते हो कि ‘जीव और शरीर एक हैं’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘जीव और शरीर एक हैं।’ यदि भगवान जानते हो कि ‘जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं।’ यदि भगवान नहीं जानते हो कि ‘जीव और शरीर एक हैं’ या ‘जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं’ — तो न जानने पर, न देखने पर ऐसा सीधा-सीधा बोल दें कि ‘मैं नहीं जानता हूँ, नहीं देखता हूँ।’

यदि भगवान जानते हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त (अस्तित्व में) होते हैं’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते हैं।’ यदि भगवान जानते हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं।’ यदि भगवान नहीं जानते हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते हैं’ या ‘तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं’ — तो न जानने पर, न देखने पर ऐसा सीधा-सीधा बोल दें कि ‘मैं नहीं जानता हूँ, नहीं देखता हूँ।’

यदि भगवान जानते हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी।’ यदि भगवान जानते हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं’ — तो भगवान मुझे बता दें कि ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं।’ यदि भगवान नहीं जानते हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी’ या ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं’ — तो न जानने पर, न देखने पर ऐसा सीधा-सीधा बोल दें कि ‘मैं नहीं जानता हूँ, नहीं देखता हूँ।’”

भगवान का उत्तर

“मालुक्यपुत्त, क्या मैंने कभी तुमसे कहा कि ‘आओ, मालुक्यपुत्त, मेरा ब्रह्मचर्य पालन करो, तब मैं तुम्हारे आगे घोषित करूँगा कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’…?”

“नहीं, भंते।”

“अथवा, क्या तुमने कभी मुझसे कहा कि ‘भंते, मैं भगवान का ब्रह्मचर्य पालन करूँगा, तब भगवान मेरे आगे घोषित करेंगे कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’…?"

“नहीं, भंते।”

“तब, मालुक्यपुत्त, न मैंने तुमसे कभी कहा कि ‘आओ, मालुक्यपुत्त, मेरा ब्रह्मचर्य पालन करो, तब मैं तुम्हारे आगे घोषित करूँगा कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’…, न ही तुमने कभी मुझसे कहा कि ‘भंते, मैं भगवान का ब्रह्मचर्य पालन करूँगा, तब भगवान मेरे आगे घोषित करेंगे कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’…, तब, निकम्मे पुरुष, तुम कौन हो, और क्या छोड़ रहे हो?

मालुक्यपुत्त, यदि कोई ऐसा कहता हो कि ‘मैं भगवान का ब्रह्मचर्य नहीं पालन करूँगा, जब तक भगवान घोषित न कर दें कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’… तब भी, मालुक्यपुत्त, तथागत उसे अघोषित ही रखेंगे, भले ही वह पुरुष मर जाए।

तीर की उपमा

जैसे, मालुक्यपुत्त, किसी पुरुष में ऐसा तीर बिंध जाए, जो गाढ़े विष में डूबाया गया हो। तब उसके मित्र-सहचारी, नाति-रिश्तेदार उसे वैद्य के पास ले जाए। किन्तु, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले पुरुष के बारे में यह न जान लूँ कि वह क्षत्रिय था, या ब्राह्मण था, या वैश्य था, या शूद्र था।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले पुरुष के बारे में यह न जान लूँ कि उसका ऐसा नाम था और यह गोत्र था।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले पुरुष के बारे में यह न जान लूँ कि वह लंबा था, या नाटा था, या मध्यम था।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले पुरुष के बारे में यह न जान लूँ कि वह काला था, या साँवला था, या गोरा था।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले पुरुष के बारे में यह न जान लूँ कि वह किस गाँव से था, या किस नगर से था, या किस शहर से।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले धनुष के बारे में यह न जान लूँ कि वह सीधा पकड़ा था या आड़ी कमान से।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले धनुस्तंभ (=धनुष-रस्सी) के बारे में यह न जान लूँ कि वह अर्क से बना था, या सन से बना था, या मांसल नस से बना था, या मरुवा से बना था, या छाल से बना था।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले धनुष की लकड़ी के बारे में यह न जान लूँ कि वह जंगली थी, या उगायी गयी थी।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले धनुष के पंख के बारे में यह न जान लूँ कि वह गिद्ध का था, या बाज का था, या चील का था, या मोर का था, या सारस का था।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले धनुष की लकड़ी के बारे में यह न जान लूँ कि वह जंगली थी, या उगायी गयी थी।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले धनुष की नस के बारे में यह न जान लूँ कि वह गाय की थी, या बैल की थी, या लंगूर की थी, या बंदर की थी।’

और, वह कहे कि — ‘मैं इस तीर को नहीं निकालूँगा, जब तक मैं उस बींधने वाले तीर के बारे में यह न जान लूँ कि वह नुकीला था, या वक्र था, या काँटेदार था, या बछड़े का दाँत था, या कनेर था?’

वह पुरुष मर जाएगा, मालुक्यपुत्त, किन्तु इन बातों को जान नहीं पाएगा।

उसी तरह, मालुक्यपुत्त, यदि कोई ऐसा कहता हो कि ‘मैं भगवान का ब्रह्मचर्य नहीं पालन करूँगा, जब तक भगवान घोषित न कर दें कि ‘लोक शाश्वत है’ या ‘लोक अशाश्वत है’… तब भी, मालुक्यपुत्त, तथागत उसे अघोषित ही रखेंगे, भले ही वह पुरुष मर जाए।

अघोषित क्यों?

ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘लोक शाश्वत है’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। और, ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘लोक अशाश्वत है’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। भले ही दृष्टि हो कि ‘लोक शाश्वत है’, या दृष्टि हो कि ‘लोक अशाश्वत है’ — तब भी जन्म होता है, बुढ़ापा होता है, मौत होती है, शोक, विलाप, दर्द, व्यथा और निराशा होती हैं। मैं उनका खात्मा इसी जीवन में करना बताता हूँ।

ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘लोक सीमित है’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। और, ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘लोक अनन्त है’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। भले ही दृष्टि हो कि ‘लोक सीमित है’, या दृष्टि हो कि ‘लोक अनन्त है’ — तब भी जन्म होता है, बुढ़ापा होता है, मौत होती है, शोक, विलाप, दर्द, व्यथा और निराशा होती हैं। मैं उनका खात्मा इसी जीवन में करना बताता हूँ।

ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘जीव और शरीर एक हैं’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। और, ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। भले ही दृष्टि हो कि ‘जीव और शरीर एक हैं’, या दृष्टि हो कि ‘जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं’ — तब भी जन्म होता है, बुढ़ापा होता है, मौत होती है, शोक, विलाप, दर्द, व्यथा और निराशा होती हैं। मैं उनका खात्मा इसी जीवन में करना बताता हूँ।

ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते हैं’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। और, ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। भले ही दृष्टि हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते हैं’, या दृष्टि हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं’ — तब भी जन्म होता है, बुढ़ापा होता है, मौत होती है, शोक, विलाप, दर्द, व्यथा और निराशा होती हैं। मैं उनका खात्मा इसी जीवन में करना बताता हूँ।

ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। और, ऐसा नहीं है, मालुक्यपुत्त, कि ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं’ इस दृष्टि के साथ ब्रह्मचर्य का पालन होता है। भले ही दृष्टि हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी’, या दृष्टि हो कि ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं’ — तब भी जन्म होता है, बुढ़ापा होता है, मौत होती है, शोक, विलाप, दर्द, व्यथा और निराशा होती हैं। मैं उनका खात्मा इसी जीवन में करना बताता हूँ।

इसलिए, मालुक्यपुत्त, मैंने जिसे अघोषित रखा है, उसे तुम अघोषित धारण करो। और जिसे घोषित किया है, उसे घोषित धारण करो। और मैंने क्या अघोषित रखा है?

  • ‘लोक शाश्वत है’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘लोक अशाश्वत है’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘लोक सीमित है’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘लोक अनन्त है’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘जीव और शरीर एक हैं’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘तथागत मरणोपरान्त होते हैं’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘तथागत मरणोपरान्त नहीं होते हैं’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘तथागत मरणोपरान्त होते भी हैं और नहीं भी’, यह मैंने अघोषित रखा है।
  • ‘तथागत मरणोपरान्त न होते हैं और न भी नहीं होते हैं’, यह मैंने अघोषित रखा है।

और, मालुक्यपुत्त, इन्हें क्यों अघोषित रखा है? क्योंकि, मालुक्यपुत्त, वह ध्येय से संबंधित नहीं है, ब्रह्मचर्य मूल से संबंधित नहीं है, उनसे न मोहभंग होता है, न वैराग्य होता है, न निरोध होता है, न प्रशान्ति मिलती है, न प्रत्यक्ष ज्ञान मिलता है, न संबोधि मिलती है, और न ही निर्वाण मिलता है। इसलिए, मालुक्यपुत्त, मैंने उसे इन्हें अघोषित रखा है।

और, मालुक्यपुत्त, मैंने क्या घोषित किया है?

  • ‘दुःख है’, यह मैंने घोषित किया है।
  • ‘दुःख की उत्पत्ति है’, यह मैंने घोषित किया है।
  • ‘दुःख का अन्त है’, यह मैंने घोषित किया है।
  • ‘दुःख का अन्तकर्ता मार्ग है’, यह मैंने घोषित किया है।

और, मालुक्यपुत्त, इन्हें क्यों घोषित किया है? क्योंकि, मालुक्यपुत्त, वह ध्येय से संबंधित है, ब्रह्मचर्य मूल से संबंधित है, उससे मोहभंग होता है, वैराग्य होता है, निरोध होता है, प्रशान्ति मिलती है, प्रत्यक्ष ज्ञान मिलता है, संबोधि मिलती है, निर्वाण मिलता है। इसलिए, मालुक्यपुत्त, मैंने उसे घोषित किया है।

इसलिए, मालुक्यपुत्त, मैंने जिसे अघोषित रखा है, उसे तुम अघोषित धारण करो। और जिसे घोषित किया है, उसे घोषित धारण करो।”

भगवान ने ऐसा कहा। हर्षित होकर आयुष्मान मालुक्यपुत्त ने भगवान की बात का अभिनंदन किया।

सुत्र समाप्त।


  1. आयुष्मान मालुक्यपुत्त सूत्रों में सदैव भिक्षु के रूप में प्रस्तुत होते हैं, हालांकि उनकी प्रवज्जा का वर्णन नहीं मिलता। इस और अगले सूत्र में उन्हें कुछ हद तक मूर्ख या नासमझ दिखाया गया है। फिर भी, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने धर्माभ्यास में निरंतरता बनाए रखी और जीवन के उत्तरार्ध में साधना संबंधी शिक्षाएँ प्राप्त कर, अंततः अरहत्व की प्राप्ति भी की।

    उनके अरहत्व प्राप्ति के दो अलग-अलग वर्णन उपलब्ध हैं — अङ्गुत्तरनिकाय ४.२५७ और संयुक्तनिकाय ३५.९५ में। बाद वाला वर्णन एक लंबी गाथा श्रृंखला प्रस्तुत करता है, जो उनके द्वारा कही गई मानी जाती है, और यही गाथाएँ थेरगाथा १६.५ में भी दोहराई गई हैं। उनके द्वारा रचित दूसरी गाथाएँ थेरगाथा ६.५ में मिलती हैं। ↩︎

  2. यह प्रसिद्ध दस “अघोषित दृष्टियों” की सूची है, जो सम्पूर्ण सुत्तपिटक में पाई जाती है (उदाहरण के लिए, दीघनिकाय ९, मज्झिमनिकाय ७२, तथा संयुक्तनिकाय ४४)। ऐसा प्रतीत होता है कि ये दस धारणाएँ एक प्रकार की चेकलिस्ट जैसी होती थी, जिससे कोई दार्शनिकों का वर्गीकरण और खंडन करते थे। ↩︎

Pali

१२२. एवं मे सुतं – एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे. अथ खो आयस्मतो मालुक्यपुत्तस्स [मालुङ्क्यपुत्तस्स (सी. स्या. कं. पी.)] रहोगतस्स पटिसल्लीनस्स एवं चेतसो परिवितक्को उदपादि – ‘‘यानिमानि दिट्ठिगतानि भगवता अब्याकतानि ठपितानि पटिक्खित्तानि – ‘सस्सतो लोको’तिपि, ‘असस्सतो लोको’तिपि, ‘अन्तवा लोको’तिपि, ‘अनन्तवा लोको’तिपि, ‘तं जीवं तं सरीर’न्तिपि, ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्तिपि, ‘होति तथागतो परं मरणा’तिपि, ‘न होति तथागतो परं मरणा’तिपि, ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’तिपि, ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’तिपि – तानि मे भगवा न ब्याकरोति. यानि मे भगवा न ब्याकरोति तं मे न रुच्चति, तं मे नक्खमति. सोहं भगवन्तं उपसङ्कमित्वा एतमत्थं पुच्छिस्सामि. सचे मे भगवा ब्याकरिस्सति – ‘सस्सतो लोको’ति वा ‘असस्सतो लोको’ति वा…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा – एवाहं भगवति ब्रह्मचरियं चरिस्सामि; नो चे मे भगवा ब्याकरिस्सति – ‘सस्सतो लोको’ति वा ‘असस्सतो लोको’ति वा…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा – एवाहं सिक्खं पच्चक्खाय हीनायावत्तिस्सामी’’ति.

१२३. अथ खो आयस्मा मालुक्यपुत्तो सायन्हसमयं पटिसल्लाना वुट्ठितो येन भगवा तेनुपसङ्कमि; उपसङ्कमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि. एकमन्तं निसिन्नो खो आयस्मा मालुक्यपुत्तो भगवन्तं एतदवोच –

१२४. ‘‘इध मय्हं, भन्ते, रहोगतस्स पटिसल्लीनस्स एवं चेतसो परिवितक्को उदपादि – यानिमानि दिट्ठिगतानि भगवता अब्याकतानि ठपितानि पटिक्खित्तानि – ‘सस्सतो लोको’तिपि, ‘असस्सतो लोको’तिपि…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’तिपि – तानि मे भगवा न ब्याकरोति. यानि मे भगवा न ब्याकरोति तं मे न रुच्चति, तं मे नक्खमति. सोहं भगवन्तं उपसङ्कमित्वा एतमत्थं पुच्छिस्सामि. सचे मे भगवा ब्याकरिस्सति – ‘सस्सतो लोको’ति वा, ‘असस्सतो लोको’ति वा…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा – एवाहं भगवति, ब्रह्मचरियं चरिस्सामि. नो चे मे भगवा ब्याकरिस्सति – ‘सस्सतो लोको’ति वा, ‘असस्सतो लोको’ति वा…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा – एवाहं सिक्खं पच्चक्खाय हीनायावत्तिस्सामीति. सचे भगवा जानाति – ‘सस्सतो लोको’ति, ‘सस्सतो लोको’ति मे भगवा ब्याकरोतु; सचे भगवा जानाति – ‘असस्सतो लोको’ति, ‘असस्सतो लोको’ति मे भगवा ब्याकरोतु. नो चे भगवा जानाति – ‘सस्सतो लोको’ति वा, ‘असस्सतो लोको’ति वा, अजानतो खो पन अपस्सतो एतदेव उजुकं होति यदिदं – ‘न जानामि, न पस्सामी’ति. सचे भगवा जानाति – ‘अन्तवा लोको’ति, ‘अनन्तवा लोको’ति मे भगवा ब्याकरोतु; सचे भगवा जानाति – ‘अनन्तवा लोको’ति, ‘अनन्तवा लोको’ति मे भगवा ब्याकरोतु. नो चे भगवा जानाति – ‘अन्तवा लोको’ति वा, ‘अनन्तवा लोको’ति वा, अजानतो खो पन अपस्सतो एतदेव उजुकं होति यदिदं – ‘न जानामि, न पस्सामी’ति. सचे भगवा जानाति – ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति, ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति मे भगवा ब्याकरोतु; सचे भगवा जानाति – ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति, ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति मे भगवा ब्याकरोतु. नो चे भगवा जानाति – ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति वा, ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति वा, अजानतो खो पन अपस्सतो एतदेव उजुकं होति यदिदं – ‘न जानामि, न पस्सामी’ति. सचे भगवा जानाति – ‘होति तथागतो परं मरणा’ति, ‘होति तथागतो परं मरणा’ति मे भगवा ब्याकरोतु; सचे भगवा जानाति – ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति, ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति मे भगवा ब्याकरोतु. नो चे भगवा जानाति – ‘होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति वा, अजानतो खो पन अपस्सतो एतदेव उजुकं होति यदिदं – ‘न जानामि न पस्सामी’ति. सचे भगवा जानाति – ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति, ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति मे भगवा ब्याकरोतु; सचे भगवा जानाति – ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति, ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति मे भगवा ब्याकरोतु. नो चे भगवा जानाति – ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा, अजानतो खो पन अपस्सतो एतदेव उजुकं होति यदिदं – ‘न जानामि, न पस्सामी’’’ति.

१२५. ‘‘किं नु [किं नु खो (स्या. कं. क.)] ताहं, मालुक्यपुत्त, एवं अवचं – ‘एहि त्वं, मालुक्यपुत्त, मयि ब्रह्मचरियं चर, अहं ते ब्याकरिस्सामि – ‘सस्सतो लोको’ति वा, ‘असस्सतो लोको’ति वा, ‘अन्तवा लोको’ति वा, ‘अनन्तवा लोको’ति वा, ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति वा, ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति वा, ‘होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा’’ति? ‘‘नो हेतं, भन्ते’’. ‘‘त्वं वा पन मं एवं अवच – अहं, भन्ते, भगवति ब्रह्मचरियं चरिस्सामि , भगवा मे ब्याकरिस्सति – ‘सस्सतो लोको’ति वा, ‘असस्सतो लोको’ति वा, ‘अन्तवा लोको’ति वा, ‘अनन्तवा लोको’ति वा, ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति वा, ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति वा, ‘होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति वा, ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा’’ति? ‘‘नो हेतं, भन्ते’’. ‘‘इति किर, मालुक्यपुत्त, नेवाहं तं वदामि – एहि त्वं, मालुक्यपुत्त, मयि ब्रह्मचरियं चर, अहं ते ब्याकरिस्सामि – ‘सस्सतो लोको’ति वा, ‘असस्सतो लोको’ति वा…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणाति वा’ति; नपि किर मं त्वं वदेसि – अहं, भन्ते, भगवति ब्रह्मचरियं चरिस्सामि, भगवा मे ब्याकरिस्सति – ‘सस्सतो लोको’ति वा ‘असस्सतो लोको’ति वा…पे… ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा’’ति. एवं सन्ते, मोघपुरिस, को सन्तो कं पच्चाचिक्खसि?

१२६. ‘‘यो खो, मालुक्यपुत्त, एवं वदेय्य – ‘न तावाहं भगवति ब्रह्मचरियं चरिस्सामि याव मे भगवा न ब्याकरिस्सति – ‘‘सस्सतो लोको’’ति वा, ‘‘असस्सतो लोको’’ति वा…पे… ‘‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’’ति वाति, अब्याकतमेव तं, मालुक्यपुत्त, तथागतेन अस्स, अथ सो पुग्गलो कालं करेय्य. सेय्यथापि, मालुक्यपुत्त, पुरिसो सल्लेन विद्धो अस्स सविसेन गाळ्हपलेपनेन. तस्स मित्तामच्चा ञातिसालोहिता भिसक्कं सल्लकत्तं उपट्ठपेय्युं. सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं पुरिसं जानामि येनम्हि विद्धो, खत्तियो वा ब्राह्मणो वा वेस्सो वा सुद्दो वा’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं पुरिसं जानामि येनम्हि विद्धो, एवंनामो एवंगोत्तो इति वा’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं पुरिसं जानामि येनम्हि विद्धो, दीघो वा रस्सो वा मज्झिमो वा’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं पुरिसं जानामि येनम्हि विद्धो, काळो वा सामो वा मङ्गुरच्छवी वा’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं पुरिसं जानामि येनम्हि विद्धो, अमुकस्मिं गामे वा निगमे वा नगरे वा’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं धनुं जानामि येनम्हि विद्धो, यदि वा चापो यदि वा कोदण्डो’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं जियं जानामि यायम्हि विद्धो , यदि वा अक्कस्स यदि वा सण्हस्स [सण्ठस्स (सी. स्या. कं. पी.)] यदि वा न्हारुस्स यदि वा मरुवाय यदि वा खीरपण्णिनो’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं कण्डं जानामि येनम्हि विद्धो, यदि वा गच्छं यदि वा रोपिम’न्ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं कण्डं जानामि येनम्हि विद्धो, यस्स पत्तेहि वाजितं [वाखित्तं (क.)] यदि वा गिज्झस्स यदि वा कङ्कस्स यदि वा कुललस्स यदि वा मोरस्स यदि वा सिथिलहनुनो’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं कण्डं जानामि येनम्हि विद्धो, यस्स न्हारुना परिक्खित्तं यदि वा गवस्स यदि वा महिंसस्स यदि वा भेरवस्स [रोरुवस्स (सी. स्या. कं. पी.)] यदि वा सेम्हारस्सा’ति; सो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं इमं सल्लं आहरिस्सामि याव न तं सल्लं जानामि येनम्हि विद्धो, यदि वा सल्लं यदि वा खुरप्पं यदि वा वेकण्डं यदि वा नाराचं यदि वा वच्छदन्तं यदि वा करवीरपत्त’न्ति – अञ्ञातमेव तं, मालुक्यपुत्त, तेन पुरिसेन अस्स, अथ सो पुरिसो कालं करेय्य. एवमेव खो, मालुक्यपुत्त, यो एवं वदेय्य – ‘न तावाहं भगवति ब्रह्मचरियं चरिस्सामि याव मे भगवा न ब्याकरिस्सति – ‘‘सस्सतो लोको’’ति वा ‘‘असस्सतो लोको’’ति वा…पे… ‘‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’’ति वाति – अब्याकतमेव तं, मालुक्यपुत्त, तथागतेन अस्स, अथ सो पुग्गलो कालङ्करेय्य.

१२७. ‘‘‘सस्सतो लोको’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति , एवं ‘नो असस्सतो लोको’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवम्पि ‘नो सस्सतो लोको’ति वा, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति, ‘असस्सतो लोको’ति वा दिट्ठिया सति अत्थेव जाति, अत्थि जरा, अत्थि मरणं, सन्ति सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा; येसाहं दिट्ठेव धम्मे निघातं पञ्ञपेमि . ‘अन्तवा लोको’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवं ‘नो अनन्तवा लोको’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवम्पि ‘नो अन्तवा लोको’ति वा, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति, ‘अनन्तवा लोको’ति वा दिट्ठिया सति अत्थेव जाति, अत्थि जरा, अत्थि मरणं, सन्ति सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा; येसाहं दिट्ठेव धम्मे निघातं पञ्ञपेमि. ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवं ‘नो अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवम्पि ‘नो तं जीवं तं सरीर’न्ति वा, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति, ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति वा दिट्ठिया सति अत्थेव जाति…पे… निघातं पञ्ञपेमि. ‘होति तथागतो परं मरणा’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवं ‘नो न होति तथागतो परं मरणा’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवम्पि ‘नो होति तथागतो परं मरणा’ति वा, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति, ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति वा दिट्ठिया सति अत्थेव जाति…पे… येसाहं दिट्ठेव धम्मे निघातं पञ्ञपेमि. ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवं ‘नो नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो अभविस्साति, एवम्पि ‘नो होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति, मालुक्यपुत्त, दिट्ठिया सति, ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति वा दिट्ठिया सति अत्थेव जाति…पे… येसाहं दिट्ठेव धम्मे निघातं पञ्ञपेमि.

१२८. ‘‘तस्मातिह, मालुक्यपुत्त, अब्याकतञ्च मे अब्याकततो धारेथ; ब्याकतञ्च मे ब्याकततो धारेथ. किञ्च, मालुक्यपुत्त, मया अब्याकतं? ‘सस्सतो लोको’ति मालुक्यपुत्त, मया अब्याकतं; ‘असस्सतो लोको’ति – मया अब्याकतं; ‘अन्तवा लोको’ति – मया अब्याकतं; ‘अनन्तवा लोको’ति – मया अब्याकतं; ‘तं जीवं तं सरीर’न्ति – मया अब्याकतं; ‘अञ्ञं जीवं अञ्ञं सरीर’न्ति – मया अब्याकतं; ‘होति तथागतो परं मरणा’ति – मया अब्याकतं; ‘न होति तथागतो परं मरणा’ति – मया अब्याकतं; ‘होति च न च होति तथागतो परं मरणा’ति – मया अब्याकतं; ‘नेव होति न न होति तथागतो परं मरणा’ति – मया अब्याकतं. कस्मा चेतं, मालुक्यपुत्त, मया अब्याकतं? न हेतं, मालुक्यपुत्त, अत्थसंहितं न आदिब्रह्मचरियकं न [नेतं (सी.)] निब्बिदाय न विरागाय न निरोधाय न उपसमाय न अभिञ्ञाय न सम्बोधाय न निब्बानाय संवत्तति. तस्मा तं मया अब्याकतं. किञ्च, मालुक्यपुत्त, मया ब्याकतं? ‘इदं दुक्ख’न्ति, मालुक्यपुत्त, मया ब्याकतं; ‘अयं दुक्खसमुदयो’ति – मया ब्याकतं; ‘अयं दुक्खनिरोधो’ति – मया ब्याकतं; ‘अयं दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदा’ति – मया ब्याकतं. कस्मा चेतं, मालुक्यपुत्त, मया ब्याकतं? एतञ्हि, मालुक्यपुत्त, अत्थसंहितं एतं आदिब्रह्मचरियकं निब्बिदाय विरागाय निरोधाय उपसमाय अभिञ्ञाय सम्बोधाय निब्बानाय संवत्तति. तस्मा तं मया ब्याकतं. तस्मातिह, मालुक्यपुत्त , अब्याकतञ्च मे अब्याकततो धारेथ; ब्याकतञ्च मे ब्याकततो धारेथा’’ति.

इदमवोच भगवा. अत्तमनो आयस्मा मालुक्यपुत्तो भगवतो भासितं अभिनन्दीति.

चूळमालुक्यसुत्तं निट्ठितं ततियं.