दीघ-निकाय का अर्थ है, लंबे उपदेशों का संग्रह! हालांकि यह संग्रह लंबा नहीं है; सबसे छोटा है, जिसमे केवल ३४ उपदेश हैं। जहाँ दूसरे निकाय सीधे, सरल और जलद शैली में प्रस्तुत किए गए हैं, दीघ निकाय के लंबे सूत्रों में धर्म से जुड़ी कथाओं और परिभाषाओं को व्यापकता और सौंदर्यता से व्यक्त होने का अवसर मिलता है। उनमें से कुछ उपदेश पालि सामग्री के सबसे उत्कृष्ठ और बेहतरीन साहित्यिक रचनाओं में शामिल हैं:
इस वर्ग में भगवान ने ब्रह्मचर्य के नैतिक आदर्श शील को व्यापकता और गहराई से बताया है। साथ ही, समाधि और प्रज्ञा को क्रमिक प्रशिक्षण अनुपुब्बसिक्खा के रूप में पेश किया है। इस वर्ग में कुल तेरह उपदेश हैं:
जिस समय भगवान की यश-किर्ति आसमान छू रही थी, तब अनेक विद्वान ब्राह्मण भगवान को परखने के लिए आते थे। उनमें से किसी का अंदाज मैत्रीपूर्ण होता था, तो किसी का ईर्ष्यापूर्ण। उनके साथ हुई रोचक चर्चा में भगवान के विनम्र व्यक्तित्व की एक अपूर्व झलक मिलती है — जिसमें सांसारिक तथ्यों में अचूकता, वाद-विवाद में परम-कौशलता, तथा परमार्थ ज्ञानदर्शन पर प्रभुत्व शामिल है। जाहिर है, ऐसे व्यक्ति से सामना होने पर ब्राह्मणों की तथाकथित विद्वता उजागर हो जाती थी। तब वे नम्र होकर, भगवान बुद्ध से उपासकता अथवा भिक्षुता ग्रहण कर अपना कल्याण साधते थे।
यह दीघनिकाय का सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है। इस में भगवान बुद्ध ६२ विभिन्न प्रकार की धारणाओं का विश्लेषण, खंडन, और उससे निकालने का मार्ग बताते है।
पुर्णिमा की रोमहर्षक रात में राजा अजातशत्रु मनःशान्ति ढूँढते हुए भगवान के पास जा पहुँचते है, और सन्यासी-जीवन पर ऐसा प्रश्न पुछते है, जिसका समाधान और कोई न कर पाए।
भगवान ने इस रोचक बहस में ब्राह्मणों के वर्ण, जाति या गोत्र की स्वघोषित श्रेष्ठता को सीधी चुनौती देते हैं, और घमंडी ब्राह्मण युवक के अहंकार को तर-बितर कर देते हैं।
ब्राह्मण सोणदण्ड के साथ हुए इस संवाद में भगवान बुद्ध ब्राह्मणत्व की सही परिभाषा करते हैं, और स्पष्ट करते हैं कि व्यक्ति को जाति-आधार पर नही, बल्कि आध्यात्मिक-आधार पर ब्राह्मण समझा जाना चाहिए।
महायज्ञ करने का अभिलाषी ब्राह्मण कूटदन्त को भगवान ऐसा क्रमवार तरीका बताते है, जो महाफलदायी हो। ऐसा यज्ञ, जिसमें हिंसा त्यागकर जरूरतमंद जनता के लिए संसाधनों की आपूर्ति की जाए।
इसमें भगवान विभिन्न उपासकों को दिव्य-रूप देखने और दिव्य-आवाज सुनने के बारे में बताते हैं। किन्तु उसके परे की उत्कृष्ठ चीजों को साक्षात्कार करने का मार्ग भी बताते हैं।
यह सूत्र अधिकांशतः पिछले महालि सुत्त जैसा ही है।
एक नंगे साधु को काया का कठोर तप करने में ही दिलचस्पी है। किन्तु भगवान उसे बताते हैं कि तब भी उसका मन दूषित रह सकता है।
एक घुमक्कड़ संन्यासी को भगवान संज्ञाओं की गहन अवस्थाओं के बारे में बताते हैं कि किस तरह वे गहरी ध्यान-अवस्थाओं से उत्पन्न होते हैं।
भगवान के परिनिर्वाण के पश्चात, आनन्द भंते को भगवान की शिक्षाओं को स्पष्ट करने के लिए बुलाया गया।
“क्या भिक्षुओं के द्वारा चमत्कार दिखाना उचित है, ताकि लोगों में श्रद्धा बढ़ जाएँ?” भगवान का इस पर अविस्मरणीय उत्तर।
“क्या किसी की अध्यात्मिक सहायता नहीं करनी चाहिए?” एक ब्राह्मण की दृष्टि का भगवान निवारण करते हैं।
कुछ सच्चे त्रिवेदी ब्राह्मण युवक ब्रह्मा के साथ समागम करने के मार्ग पर उलझन में हैं। किन्तु वे भाग्यशाली हैं, क्योंकि भगवान पास ही रहते हैं।
इस वर्ग में मात्र दस उपदेश शामिल हैं — जिसमें भगवान ने जीवन के मूल-तत्वों, धर्म-सिद्धांतों, और ध्यान-विधियों का विस्तार से वर्णन किया है।
(🔔 पालि मूल उपलब्ध है। इनका अनुवाद हो रहा है। कृपया धीरज रखें!)
दुर्लभ ही होता है कि जब भगवान भिक्षुसंघ को बैठकर कोई कथा सुनाए। यह कथा पिछले सात सम्यक-सम्बुद्धों की महाकथा हैं। किन्तु, प्रश्न उठता है कि भगवान को यह महाकथा भला कैसे पता है?
आयुष्मान आनन्द को लगता है कि उन्होने पटिच्चसमुप्पाद को गहराई से जान लिया। भगवान उन्हें चेताते हैं कि इतना आत्मविश्वास मत पालो। और, तब दुःख के विविध कारण और निर्भर घटकों का गहराई से वर्णन करते है।
यह पालि साहित्य का सबसे लंबा सूत्र है, जो बुद्ध के महापरिनिर्वाण कथा को विवरण के साथ बताती है। भगवान बुद्ध और उनके अंतिम दिनों के बारे यहाँ लंबा ब्योरा मिलता है, जिससे बुद्ध के व्यक्तिमत्व गहराई से झलकता है।
इसमे विभिन्न धार्मिक, नैतिक और सामाजिक विषयों पर विविध सुत्त शामिल है। बुद्ध के ये प्रवचन आज भी उतने ही प्रासंगिक है, जितने उस समय थे।
(🔔 पालि मूल उपलब्ध है। इनका अनुवाद हो रहा है। कृपया धीरज रखें!)