भगवान बुद्ध, जिनका जन्म सिद्धत्थ या “सिद्धार्थ गोतम” के नाम से हुआ, हजारों साल पहले इस धरती पर आए थे। कहते हैं कि युगों-युगों तक इस संसार को बुद्ध का दर्शन नहीं होता। और जब कोई बोधिसत्व परमार्थ की खोज में ‘सम्यक-सम्बुद्ध’ बनता है, वह युग देवताओं और मनुष्यों के लिए परम सौभाग्य का होता है।
जब बुद्ध ने आर्यसत्यों का साक्षात्कार किया, तो उन्होंने दुनिया को यह समझाया कि दुःख केवल एक सच है, लेकिन उसे समाप्त भी किया जा सकता है। तब उन्होंने धर्मचक्र को प्रवर्तित किया और संघ की स्थापना की, जिससे लाखों लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने और मुक्ति पाने का रास्ता मिला।
जब भगवान बुद्ध इस धरती पर विचरण कर रहे थे, तब उनके बारे में यह बात प्रचलित थी:
“‘वाकई भगवान ही अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध है—विद्या और आचरण से संपन्न, परम लक्ष्य पा चुके, दुनिया के ज्ञाता, दमनशील पुरुषों के अनुत्तर सारथी, देवों और मनुष्यों के गुरु, बुद्ध भगवान!’
वे प्रत्यक्ष-ज्ञान का साक्षात्कार कर, उसे — देव, मार, ब्रह्मा, श्रमण, ब्राह्मण, राजा और जनता से भरे इस लोक में — प्रकट करते हैं। वे ऐसा सार्थक और शब्दशः धर्म बताते हैं, जो आरंभ में कल्याणकारी, मध्य में कल्याणकारी, अन्त में कल्याणकारी हो; और सर्वपरिपूर्ण, परिशुद्ध ‘ब्रह्मचर्य’ प्रकाशित हो।”
— दीघनिकाय १ : ब्रह्मजाल सुत्त
बुद्ध इस संसार में एक अनूठा आदर्श हैं — अध्यात्म और सच्चाई के प्रतीक, अहिंसा और करुणा के सर्वोच्च रूप। उनका जीवन एक प्रखर सूरज की तरह हर युग को प्रकाशित करता है, और उनकी शिक्षाएँ समय की हर धारा में हमेशा जीवंत, प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी रहती हैं।
आईए, प्राचीन सूत्रों की दृष्टि से बुद्ध के जीवन का साक्षात्कार करें — ऐसा साक्षात्कार जिसमें किसी और की सोच या कल्पना की मिलावट नहीं है। यहाँ वही प्रस्तुत है, जो स्वयं भगवान ने अपने मुख से अपने बारे में कहा — बिना किसी लाग-लपेट के, बिना शब्दों की सजावट के — जस का तस।
आईए, पहली कड़ी में राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म की ओर बढ़ें।