नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

पारमिता का मिथक

पारमिता को पूर्णता या संचय के रूप में समझा जाता हैं। अर्थात, बुद्ध या अरहंत बनने के लिए आवश्यक गुणों को पूर्ण करना। आज यह एक अत्यंत लोकप्रिय और व्यापक रूप से स्वीकृत अवधारणा है। लेकिन दरअसल, इसके पीछे एक प्रतिक्रांति की सांस्कृतिक धारा है। पारमिता की धारणा समय के साथ बदलते गयी है और महायान परंपरा के उदय के साथ अत्यंत मजबूत हो चुकी है। अब इस विचार को चुनौती देना आसान नहीं रहा। फिर भी, इस लेख में हम पारमिता का ऐतिहासिक संदर्भ, इसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण और प्राचीन बौद्ध साहित्य के दृष्टिकोण से इसका परीक्षण करेंगे।

यह संभव है कि इस आलोचनात्मक लेख से कुछ पाठक परेशान हों या कुछ का बौद्धिक मनोरंजन हो। लेकिन इस लेख का असली उद्देश्य धर्म का शुद्धिकरण है — सद्धर्म को अधर्म से अलग कर सम्यकदृष्टि का मूल स्वरूप निर्धारित करना।

“बहुत से लोग घसर जाते हैं, बिना सीमा पहचाने…

सब जानते हैं कि आजकल बौद्ध धर्म में कई प्रकार की मिथ्या धारणाएँ फैल चुकी हैं। उनमें से कई अवधारणाओं से मुक्ति मार्ग में कोई विशेष फ़र्क नहीं पड़ता है। कुछ धारणाओं का समय के साथ निराकरण भी हो जाता है। लेकिन पारमी ऐसी संकल्पना है, जो धर्म में मिलने वाली असफलताओं का एक मिथक कारण प्रस्तुत करती है, और मिथ्या मार्ग पर भटके शिष्यों को न्यायोचित साबित करना चाहती है। यह एक बहुत शक्तिशाली अवधारणा है, जो अनेक धार्मिक लोगों के जीवन को आकार दे रही है। इसलिए इस संकल्पना का डटकर विश्लेषण करना अत्यावश्यक है, ताकि इससे जुड़ी मिथक बातों को उजागर किया जा सकें।

किन्तु यह ध्यान देने योग्य है कि पारमिता का उल्लेख प्राचीन बौद्ध साहित्य (Early Buddhist Texts) में नहीं मिलता।

थेरवाद, बौद्ध धर्म का एक प्राचीन और प्रामाणिक रूप है, जो बुद्ध की मूल शिक्षाओं के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखने का प्रयास करता है। जब हम पारमिता की अवधारणा की जड़ें और उसके ऐतिहासिक विकास का विश्लेषण करते हैं, तो हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यह विचार एक प्रकार का मिथक बन गया है, जो समय के साथ और अधिक जटिल हो गया है।

महायान बौद्ध धर्म में पारमिता को एक आदर्श स्थिति के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो आत्मा के विकास और बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए अनिवार्य मानी जाती है। लेकिन यह अवधारणा कितनी यथार्थ है? क्या यह वास्तव में बौद्ध धर्म की मूल शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है, या यह मात्र एक सामाजिक निर्माण है?

इस चर्चा में, हम पारमिता के विभिन्न पहलुओं की आलोचना करेंगे, उनके ऐतिहासिक संदर्भ का विश्लेषण करेंगे, और यह देखेंगे कि कैसे थेरवादी दृष्टिकोण हमें इस अवधारणा की सीमाओं और उसकी अन्वेषणीयता को समझने में मदद कर सकता है।

अब, पहले बिंदु पर ध्यान केंद्रित करें: पारमिता का ऐतिहासिक संदर्भ और उसकी उत्पत्ति।