नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

आवाहन सूत्र

परित्त पाठ से पहले देवताओं को विधिपूर्वक आमंत्रित करने की परंपरा है, विशेषकर जब किसी स्थान या व्यक्ति की रक्षा के लिए पाठ किया जा रहा हो। यह निमंत्रण उन्हें आकर धर्मसूत्र सुनने, अनुमोदन करने और पाठ करने वाले व्यक्ति या परिवार को आशीर्वाद देने के लिए दिया जाता है, जिससे परित्त का प्रभाव बढ़ता है। इससे वातावरण शुद्ध और संरक्षित होता है, और पाठ व उससे प्राप्त पुण्य अधिक फलदायी बनते हैं।

📢 देवता आमंत्रण

Sutra


(अग्र भिक्खु:)
समन्ता चक्कवाळेसु अत्रागच्छन्तु देवता।
सद्धम्मं मुनि-राजस्स सुणन्तु सग्ग-मोक्खदं।

सग्गे कामे च रुपे,
गिरि-सिखरतटे च’अन्तलिक्खे विमाने,
दीपे रट्ठे च गामे,
तरुवन-गहने गेव-वत्थुम्हि खेत्ते,
भुम्मा च’आयन्तु देवा,
जल-थल-विसमे यक्ख-गन्धब्ब-नागा,
तिट्ठन्ता सन्तिके यं:
मुनि-वर-वचनं साधवो मे सुणन्तु।

बुद्ध-दस्सन-कालो अयं भद्दन्ता।
धम्मस्सवन-कालो अयं भद्दन्ता।
सङघ-पयिरूपासन-कालो अयं भद्दन्ता।



(सभी:)
(साधु! साधु! साधु!)

Hindi


(अग्र भिक्खु:)
समस्त चक्रवालों के देवता यहाँ आए।
मुनियों के राजा का सद्धर्म सुनें,
जो स्वर्ग व मोक्ष की ओर ले जाता है।

कामलोक और रूपलोक के स्वर्ग,
पर्वत शिखर के, अंतरिक्ष विमानों के,
द्वीप, देशो और गाँव के,
वृक्ष, झाड़ियों और झुरमुटों के,
घर, जमीन, और खेतों के,
भूमि के देवता आएँ
जल, थल, विषम जगहों के,
यक्ष, गंधर्व एवं नाग:
आस-पास खड़े देवता,
सभी यहाँ आएँ और सुनें,
मैं श्रेष्ठ मुनि के वचनों का पाठ करता हूँ।

बुद्ध दर्शन का यही उचित समय है, पूज्यगण।
धर्म सुनने का यहीं उचित समय है, पूज्यगण।
संघ पर ध्यान देने का यहीं उचित समय है, पूज्यगण।



(सभी:)
(साधु! साधु! साधु!)

Long


(अग्र भिक्खु:)
समन्ता चक्कवालेसु, अत्रागच्छन्तु देवता।
सद्धम्मं मुनिराजस्स, सुणन्तु सग्गमोक्खदं।

धम्मस्सवण-कालो, अयं भदन्ता।
धम्मस्सवण-कालो, अयं भदन्ता।
धम्मस्सवण-कालो, अयं भदन्ता।

(सभी:)
(साधु! साधु! साधु!)

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस।

ये सन्ता सन्त-चित्ता, तिसरणसरणा।
एत्थ लोकन्तरे वा, भुम्मा भुम्मा च देवा।
गुणगणगहणा, व्यावटा सब्बकालं।
एते आयन्तु देवा, वरकनकमये।
मेरुराजे वसन्तो, सन्तो सन्तोसहेतुं ।
मुनिवरवचनं, सोतुमग्गं समग्गा।

सब्बेसु चक्कवालेसु, यक्खा देवा च ब्रह्मनो।
यं अम्हेहि कतं पुञ्ञं, सब्बसम्पत्तिसाधकं।
सब्बे तं अनुमोदित्वा, समग्गा सासने रता,
पमादरहिता होन्तु, आरक्खासु विसेसतो।

सासनस्स च लोकस्स, वुद्धी भवतु सब्बदा।
सासनम्पि च लोकञ्च, देवा रक्खन्तु सब्बदा।
सद्धिं होन्तु सुखी सब्बे, परिवारेहि अत्तनो।
अनीघा सुमना होन्तु, सह सब्बेहि ञातिभि।

राजतो वा, चोरतो वा, मनुस्सतो वा, अमनुस्सतो वा,
अग्गित्तो वा, उदकतो वा, पिसाचतो वा, खाणुकतो वा,
कण्टकतो वा, नक्खत्ततो वा, जनपदरोगतो वा,
चण्ड-हत्थि-अस्स-मिग-गोण-कुक्कुर
अहि-विच्छिका-मणि-सप्प दीपि
अच्छ-तरच्छ-सूकर-महिस-यक्ख-रक्खसादीहि
नाना भयतो वा, नाना रोगतो वा,
नाना उपद्दवतो वा, आरक्खं गण्हन्तु।


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