नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

बोज्झङ्ग परित्त

एक बार महा-मोग्गल्लान और महा-कस्सप भंते बीमार पड़े, तो भगवान ने उन्हें स्वयं मूल बोज्झङ्ग सुत्त सुनाया, जिससे उनका रोग शांत हो गया। बाद में, जब स्वयं भगवान अस्वस्थ हुए, तो उन्होंने चुंद भंते से यही सुत्त सुनाने को कहा, और उसके प्रभाव से वे शीघ्र स्वस्थ हो गए। यह परित्त सात बोध्यंगों के स्मरण से चित्त को संतुलित, निर्मल और आरोग्यकारी बनाता है, इसलिए आज भी इसका पाठ रोग शमन और मानसिक शुद्धि के लिए किया जाता है।

📢 बोज्झङ्ग परित्त पाठ

Sutra

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।

बोज्झङ्गो सतिसङ्खातो, धम्मानं विचयो तथा
वीरियम-पीति-पस्सद्धि बोज्झङ्गा च तथापरे
समाध'उपेक्खा-बोज्झङ्गा, सत्ते ते सब्ब-दस्सिना
मुनिना सम्मदक्खाता भाविता बहुलीकता
संवत्तन्ति अभिञ्ञाय, निब्बानाय च बोधिया।
एतेन सच्च-वज्जेन सोत्थि ते होतु सब्बदा।

एकस्मिं समये नाथो, मोग्गल्लानञ्च कस्सपं,
गिलाने दुक्खिते दिस्वा, बोज्झङ्गे सत्त देसयि।
ते च तं अभिनन्दित्वा, रोगा मुच्चिंसु तङ्खणे।
एतेन सच्च-वज्जेन सोत्थि ते होतु सब्बदा।

एकदा धम्मराजापि, गेलञ्ञेना’भिपीळितो,
चुन्दत्थेरेन तञ्ञेव, भणापेत्वान सादरं।
सम्मोदित्वा च आबाधा, तम्हा वुट्ठासि ठानसो।
एतेन सच्च-वज्जेन सोत्थि ते होतु सब्बदा।

पहीना ते च आबाधा, तिण्णन्नम्पि महेसिनं
मग्गाहता-किलेसा व, पत्ता’नुपत्तिधम्मतं।
एतेन सच्च-वज्जेन सोत्थि ते होतु सब्बदा।

( सूत्र समाप्त )


( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
एतेन सच्चवज्जेन सब्ब रोगा विनस्सतु!
एतेन सच्चवज्जेन सब्ब रोगा विनस्सतु!
एतेन सच्चवज्जेन सब्ब रोगा विनस्सतु! )

Hindi

उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।

बोधि-अंगों में शामिल है
स्मृति और स्वभाव-जाँच
ऊर्जा, प्रफुल्लता, प्रशान्ति बोधि-अंग,
तथा समाधि और तटस्थता बोधि-अंग।
सर्व-दर्शी मुनि ने सम्यक रूप से सिखाए
इन सात को जब विकसित व परिपक्व किया जाता है,
तो सर्वोच्च ज्ञान, निर्वाण व बोधि मिलती है।
इस सत्य-वचन से तुम्हारा हमेशा भला हो।

एक समय हमारे रक्षक ने मोग्गलान व कश्यप
को बीमार, पीड़ित देखकर सात बोधि-अंगों सिखाए।
वे, उसमे ख़ुश हो, तुरंत रोग से मुक्त हुए।
इस सत्य-वचन से तुम्हारा हमेशा भला हो।

एक बार जब धर्म-राजा बीमारी से पीड़ित थे,
चुन्द स्थविर को उन्होंने उसी सीख का श्रद्धा से पाठ करने लगाया।
और (सुन) स्वीकृति देकर वे उस बीमारी से उठ खड़े हुए।
इस सत्य-वचन से तुम्हारा हमेशा भला हो।

वे बीमारियाँ तीन महा-दर्शियों से ख़त्म की गयी,
वैसे ही जैसे मार्ग से क्लेशों का नाश होता है
– धर्मानुसार कदम-कदम चलते हुए।
इस सत्य-वचन से तुम्हारा हमेशा भला हो।

( सूत्र समाप्त )


( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से सभी रोग खत्म हो!
इस सत्यवचन से सभी रोग खत्म हो!
इस सत्यवचन से सभी रोग खत्म हो! )


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