नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

जय परित्त

यह परित्त विजयों की मंगलकामना से जुड़ा है, जिसे भगवान बुद्ध ने युद्ध में जाने वाले राजाओं और भिक्षुओं को सुनाया था। यह सुत्त चित्त में आत्मविश्वास, साहस और अडिगता उत्पन्न करता है। आज भी इसका पाठ कठिन परिस्थितियों में विजय, सुरक्षा और मानसिक बल प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

📢 जय परित्तपाठ

Sutra

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।

महाकारुणिको नाथो, हिताय सब्बपाणिनं,
पूरेत्वा पारमी सब्बा, पत्तो सम्बोधि’मुत्तमं।
एतेन सच्चवज्जेन, होतु ते जयमङ्गलं।

जयन्तो बोधिया मूले, सक्यानं नन्दिवड्ढनो,
एवं तुय्हं जयो होतु, जयस्सु जयमङ्गलं।

सक्कत्वा बुद्ध-रतनं, ओसथं उत्तमं वरं
हितं देव-मनुस्सानं, बुद्ध-तेजेन सोत्थिना
नस्सन्त’उपद्दवा सब्बे दुक्खा वूपसमेन्तु ते।

सक्कत्वा धम्म-रतनं, ओसथं उत्तमं वरं
परिळाहूपसमनं, धम्म-तेजेन सोत्थिना
नस्सन्त’उपद्दवा सब्बे भया वूपसमेन्तु ते।

सक्कत्वा सङ्घ-रतनं, ओसथं उत्तमं वरं
आहुनेय्यं पाहुनेय्यं, सङ्घ-तेजेन सोत्थिना
नस्सन्त’उपद्दवा सब्बे रोगा वूपसमेन्तु ते।

यं किञ्चि रतनं लोके विज्जती विविधा पुथु,
रतनं बुद्धसमं नत्थि तस्मा सोत्थि भवन्तु ते।

यं किञ्चि रतनं लोके विज्जती विविधा पुथु,
रतनं धम्मसमं नत्थि तस्मा सोत्थि भवन्तु ते।

यं किञ्चि रतनं लोके विज्जती विविधा पुथु,
रतनं सङ्घसमं नत्थि तस्मा सोत्थि भवन्तु ते।

नत्थि मे सरणं अञ्ञं बुद्धो मे सरणं वरं,
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं।

नत्थि मे सरणं अञ्ञं धम्मो मे सरणं वरं,
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं।

नत्थि मे सरणं अञ्ञं सङ्घो मे सरणं वरं,
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं।

सब्बीतियो विवज्जन्तु, सोको रोगो विनस्सतु ।
मा ते भवन्त्वन्तरायो, सुखी दीघायुको भव।

भवतु सब्ब-मङ्गलं, रक्खन्तु सब्ब-देवता,
सब्ब-बुद्धानुभावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते।

भवतु सब्ब-मङ्गलं, रक्खन्तु सब्ब-देवता,
सब्ब-धम्मानुभावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते।

भवतु सब्ब-मङ्गलं, रक्खन्तु सब्ब-देवता,
सब्ब-संघानुभावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते।

नक्खत्त-यक्ख-भूतानं पापग्गह-निवारणा,
परित्तस्सानुभावेन हन्तु सब्बे उपद्दवे।

यन्दुन्निमित्तं अवमङ्गलञ्च
यो चा’मनापो सकुणस्स सद्दो
पापग्गहो दुस्सुपिनं अकन्तं
बुद्धानुभावेन विनासमेन्तु।

यन्दुन्निमित्तं अवमङ्गलञ्च
यो चा’मनापो सकुणस्स सद्दो
पापग्गहो दुस्सुपिनं अकन्तं
धम्मानुभावेन विनासमेन्तु।

यन्दुन्निमित्तं अवमङ्गलञ्च
यो चा’मनापो सकुणस्स सद्दो
पापग्गहो दुस्सुपिनं अकन्तं
संघानुभावेन विनासमेन्तु।

( सूत्र समाप्त )

Hindi

उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।

हमारे महाकारुणिक रक्षक ने,
समस्त जीवों के हित के लिए,
सब पारमिताओं को पूर्ण कर,
सर्वोत्तम संबोधि प्राप्त की।
इस सत्यवचन से तुम्हारा जयमंगल हो।

बोधि वृक्ष के तले विजयी हो,
शाक्यों का आनंद बढ़ा दिया,
वैसे तुम्हारा भी जयमंगल विजय हो।

सत्कार कर बुद्ध रत्न का,
जो सर्वोच्च, सर्वोत्तम औषध है,
देव और मानवों के हित
बुद्ध के प्रतापी सुरक्षा से,
उपद्रवों का नाश होकर
तुम्हारे सभी दुख शांत हो जाए।

सत्कार कर धम्म रत्न का,
जो सर्वोच्च, सर्वोत्तम औषध है,
राग-ताप को ठंडा करने वाले
धर्म के प्रतापी सुरक्षा से,
उपद्रवों का नाश होकर
तुम्हारे सभी दुख शांत हो जाए।

सत्कार कर संघ रत्न का,
जो सर्वोच्च, सर्वोत्तम औषध है,
उपहार देने योग्य, आवभगत करने योग्य
संघ के प्रतापी सुरक्षा से,
उपद्रवों का नाश होकर
तुम्हारे सभी दुख शांत हो जाए।

इस दुनिया में विविध प्रकार के,
जितने भी रत्न दिखायी देते हैं,
कोई बुद्ध के समान नहीं हैं,
इसलिए तुम्हारा कल्याण हो।

इस दुनिया में विविध प्रकार के,
जितने भी रत्न दिखायी देते हैं,
कोई धर्म के समान नहीं हैं,
इसलिए तुम्हारा कल्याण हो।

इस दुनिया में विविध प्रकार के,
जितने भी रत्न दिखायी देते हैं,
कोई संघ के समान नहीं हैं,
इसलिए तुम्हारा कल्याण हो।

मेरी शरण कहीं अन्य नहीं,
श्रेष्ठ बुद्ध में मेरी शरण है।
इस सत्यवचन से तुम्हारा जयमंगल हो।

मेरी शरण कहीं अन्य नहीं,
श्रेष्ठ धर्म में मेरी शरण है।
इस सत्यवचन से तुम्हारा जयमंगल हो।

मेरी शरण कहीं अन्य नहीं,
श्रेष्ठ संघ में मेरी शरण है।
इस सत्यवचन से तुम्हारा जयमंगल हो।

सभी आपदाएँ दूर हो,
शोक और रोग विनाश हो।
तुम्हारा कोई विघ्न न हो,
सुखी और दीर्घायु हो।

तुम्हारा सब मंगल हो,
सब देवता रक्षा करें।
सभी बुद्धों के प्रताप से,
सदा तुम्हारा कल्याण हो।

तुम्हारा सब मंगल हो,
सब देवता रक्षा करें।
सभी धर्मों के प्रताप से,
सदा तुम्हारा कल्याण हो।

तुम्हारा सब मंगल हो,
सब देवता रक्षा करें।
सभी संघों के प्रताप से,
सदा तुम्हारा कल्याण हो।

बुरे नक्षत्र, यक्ष और भूत,
दुर्भाग्य गृह के पड़ते प्रभाव,
इस परित्राण के प्रताप से,
सभी उपद्रव समाप्त हो।

जो बुरे संकेत, अपशकुन हैं,
पक्षियों के डरावने बोल हैं,
कष्टप्रद भाग्य, बुरे-स्वप्न हैं,
बुद्ध के प्रताप से वे सब नष्ट हो।

जो बुरे संकेत, अपशकुन हैं,
पक्षियों के डरावने बोल हैं,
कष्टप्रद भाग्य, बुरे-स्वप्न हैं,
धर्म के प्रताप से वे सब नष्ट हो।

जो बुरे संकेत, अपशकुन हैं,
पक्षियों के डरावने बोल हैं,
कष्टप्रद भाग्य, बुरे-स्वप्न हैं,
संघ के प्रताप से वे सब नष्ट हो।

( सूत्र समाप्त )


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