ये आठ गाथाएँ उन प्रसंगों का स्मरण कराती हैं, जहाँ बुद्ध ने अपने विविध गुणों से विविध संकटों पर विजय पाई। थाईलैंड में इन्हें युद्ध के समय राजाओं की सफलता हेतु रचा गया था। आज भी इनका पाठ भय, संकट और दुर्भाग्य को दूर करने के लिए किया जाता है, जिससे अटूट श्रद्धा, आंतरिक शक्ति और मंगल भावना जाग्रत होती है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
अर्थात,
ऋद्धिनिर्मित हज़ार भुजाओं में शस्त्र धरे गिरिमेखला हाथी पर सवार हो “मार” ने अपनी सेना-सहित आकर दहला-देनेवाली भीषण-घोषणा की।
जिन मुनीन्द्र ने उसे अपने “दान आदि” धर्मबलों से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
मार से अधिक डरावने, सारी रात युद्ध करनेवाले अहंकारी व बेचैन यक्ष “आलवक” थे।
जिन मुनीन्द्र ने उसे अपने “सु-अभ्यस्त क्षान्ति“ (सहनशील-क्षमा) के बल से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
“नालागिरि”, हाथीयों में सर्वश्रेष्ठ, जब मदमत्त हो अत्यंत भयावह हो उठा अग्नि-चक्र, जंगल में फैली आग, बिजली गिरने की भांति।
जिन मुनीन्द्र ने उसे अपने “जल-रूपी मैत्री छिड़कने” से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
दक्ष-हाथ में तलवार उठाए, अत्यंत भयावह, तीन-योजन तक पथ पर दौड़े “अंगुलिमाल”।
जिन मुनीन्द्र ने उसे अपने “मनो-ऋद्धि चमत्कार” से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
पेट पर लकड़ी बांध कर गर्भिणी का ढोंग रचानेवाली “चिञ्चा” ने बीच लोगों में अश्लील आरोप लगाए।
जिन मुनीन्द्र ने उसे अपनी “शांति व सभ्यता” से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
सत्य को त्यागे, उत्तेजक मतों-वाला “सच्चक” जिसका मन वाद-विवाद में ही हर्षित होता अत्यंत अंधा हो चुका था।
जिन मुनीन्द्र ने उसे “प्रज्ञा-दीप जला कर” जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
“नन्दोपनन्द” नाग, महाऋद्धिमानी गलत-सोच रखता था।
अपने पुत्र (महा-मोग्गलान), उससे भी वरिष्ठ नाग को उसका दमन करने भेज जिन मुनीन्द्र ने उसे “ऋद्धि-उपदेश” से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारा विजय-मंगल हो!
नागरूपी मिथ्या-दृष्टियों द्वारा जिसके हाथ कड़ाई से जकड़े हुए थे, वह “बक-ब्रह्म” ज्योति-चमक व ऋद्धिबलों में स्वयं को सर्वाधिक शुद्ध समझता था।
जिन मुनीन्द्र ने उसे अपने “ज्ञान-शब्दों” से जीत लिया, उनके प्रताप से तुम्हारी विजय-मंगल हो!
यह बुद्ध के जीतों पर मङ्गल अष्ट-गाथा दिन-ब-दिन जो स्मरण करेगा, सभी प्रकार के बाधाओं को समाप्त कर वह प्रज्ञावान व्यक्ति मोक्ष व सुख प्राप्त करेगा।
( सूत्र समाप्त )
( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से सबका भला हो!
इस सत्यवचन से सभी दुःख, सभी ख़तरे,
सभी रोग, सभी बाधाएँ, सभी उपद्रव नष्ट हो!
इस सत्यवचन से सभी का जयमंगल हो! )