एक बार एक भिक्षु की सर्पदंश से मृत्यु हो गई। तब भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं को चार प्रमुख सर्प राजकुलों के प्रति मैत्रीभाव विकसित करने की सीख दी। कहा जाता है कि इस परित्त का श्रद्धापूर्वक पाठ कर मैत्री फैलाने से साँपों से रक्षा हो सकती है, यहाँ तक कि दंश के बाद भी विष से मृत्यु न हो।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
विरूपक्षों के प्रति मैं सद्भावना करूँ, सद्भावना करूँ मैं ऐरापथों के प्रति।
छ्ब्यापुत्रों के प्रति मैं सद्भावना करूँ, सद्भावना करूँ मैं कान्हा गोतमों के प्रति।
बेपैर [जीवों] के प्रति मैं सद्भावना करूँ, सद्भावना करूँ मैं दुपैरों के प्रति।
चतुपैरों के प्रति मैं सद्भावना करूँ, सद्भावना करूँ मैं बहुपैरों के प्रति।
बेपैर मेरे प्रति न हिंसा करें, मेरे प्रति हिंसा न करें दुपैर।
चतुपैर मेरे प्रति न हिंसा करें, मेरे प्रति हिंसा न करें बहुपैर।
सभी सत्व, सभी प्राणी, सभी जीव, हर कोई —
मात्र भलाई देखें। पाप से किंचित भी समागम न करें।
बुद्ध असीम है! धर्म असीम है! संघ असीम है!
किंतु रेंगते जीव सीमित हैं — सांप, बिच्छू, गोजर,
मकड़ियां, छिपकलियां, चूहें।
स्वयं को मैने संरक्षित किया। मैने स्वयं पर कवच बांध लिया।
चले जाएँ सभी जीव!
मैं नमन करूँ भगवान को।
नमन है सातों सम्यक-सम्बुद्ध को!
( सूत्र समाप्त )
( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से सबका भला हो!
इस सत्यवचन से सभी दुःख, सभी ख़तरे,
सभी रोग, सभी बाधाएँ, सभी उपद्रव नष्ट हो!
इस सत्यवचन से सभी का जयमंगल हो! )
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‘आचार्य अचलो भिक्खु’ द्वारा प्रकाशित खन्धपरित्त पाठ के इस प्रेरणादायी वीडियो को ‘शिवानी गुप्ता अगरवाल’ ने अद्वितीय सौंदर्य के साथ गाया, जबकि कामुद, उदय और रूपक ने इसे भावपूर्ण संगीत से संवारकर एक उत्कृष्ट कृति बना दिया —