नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

महामङ्गल सुत्त

यह सूत्र गृहस्थ जीवन के कल्याणकारी उपायों का संकलन है। इसे भिक्षु और गृहस्थ विशेष रूप से मंगलकामनाओं के लिए पाठ करते हैं, जैसे विवाह, गृहप्रवेश, जन्मदिवस और अन्य शुभ अवसरों पर। लेकिन इसका वास्तविक लाभ तभी मिलता है जब बुद्ध द्वारा बताए गए ३८ मंगल गुणों को जीवन में अपनाया जाए। क्योंकि सच्चा मंगल केवल पाठ करने से नहीं, बल्कि इन शिक्षाओं का पालन करने से ही प्राप्त होता है।

📢 महामङ्गल सुत्तपाठ

Sutra

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।

एवं मे सुतं‌ — एकं समयं भगवा सावित्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे। अथ खो अञ्ञतरा देवता अभिक्कन्ताय रत्तिया अभिक्कन्तवण्णा केवलकप्पं जेतवनं ओभासेत्वा येन भगवा तेनुपसङ्कमि उपसङ्कमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं अट्ठासि। एकमन्तं ठिता खो सा देवता भगवन्तं गाथाय अज्झभासि —

बहु देवा मनुस्सा च, मङ्गलानि अचिन्तयुं
आकङ्खमाना सोत्थानं, ब्रुहि मङ्गलमुत्तमं।

असेवना च बालानं, पण्डितानञ्च सेवना,
पूजा च पूजनीयानं, एतं मङ्गलमुत्तमं।

पतिरूप-देसवासो च, पुब्बे च कतपुञ्ञता।
अत्तसम्मापणिधि च, एतं मङ्गलमुत्तमं।

बाहुसच्चञ्च सिप्पञ्च, विनयो च सुसिक्खितो,
सुभासिता च या वाचा, एतं मङ्गलमुत्तमं।

माता-पितु-उपट्ठानं, पुत्तदारस्स सङ्गहो,
अनाकुला च कम्मन्ता, एतं मङ्गलमुत्तमं।

दानञ्च धम्मचरिया च, ञातकानं च सङ्गहो,
अनवज्जानि कम्मानि, एतं मङ्गलमुत्तमं।

आरति विरति पापा, मज्जपाना च संयमो
अप्पमादो च धम्मेसु, एतं मङ्गलमुत्तमं।

गारवो च निवातो च, सन्तुट्ठि च कतञ्ञुता,
कालेन धम्मस्सवणं, एतं मङ्गलमुत्तमं।

खन्ति च सोवचस्सता, समणानञ्च दस्सनं,
कालेन धम्मसाकच्छा, एतं मङ्गलमुत्तमं।

तपो च ब्रह्मचरियञ्च, अरियसच्चान-दस्सनं,
निब्बान-सच्छिकिरिया च, एतं मङ्गलमुत्तमं।

फुट्ठस्स लोकधम्मेहि, चित्तं यस्स न कम्पति,
असोकं विरजं खेमं, एतं मङ्गलमुत्तमं।

एतादिसानि कत्वान, सब्बत्थमपराजिता,
सब्बत्थ सोत्थिं गच्छन्ति, तं तेसं मङ्गलमुत्त’न्ति।

( सूत्र समाप्त )


( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं!
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं!
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं! )

Hindi

उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।

ऐसा मैंने सुना — एक समय भगवान श्रावस्ती में अनाथपिंडक के जेतवन विहार में रह रहे थे। तब देर रात, कोई देवता अत्याधिक कांति से संपूर्ण जेतवन रौशन करते हुए भगवान के पास गया, और पहुँचकर अभिवादन कर एक-ओर खड़ा हुआ। खड़े होकर भगवान के समक्ष गाथाओं का उच्चार किया:

“बहुत से देव एवं मानव,
अपने मंगल का चिंतन करते हैं,
भलाई की आकांक्षा रखते हैं।
कृपा कर ‘उत्तम मंगल’ बताएँ?”

(भगवान:)
“मूर्खों से असंगति,
विद्वानों से संगति,
पूजनीयों की पूजा
— उत्तम मंगल हैं!

सभ्य प्रदेश में निवास,
पूर्व पुण्यों का होना,
स्वयं का सही संचालन
— उत्तम मंगल है!

विस्तृत ज्ञान, कार्यकौशलता,
अनुशासन में सुशिक्षित होना,
वाणी में सुभाषिता
— उत्तम मंगल हैं!

माता-पिता को सहारा,
पत्नी-संतान का पोषण
कार्यों को न अधूरा छोड़ना
— उत्तम मंगल हैं!

दान एवं धर्मचर्या,
रिश्तेदारों को सहारा,
निर्दोष कार्य करना
— उत्तम मंगल हैं!

पाप टाल, विरत रहना,
मद्यपान में संयम,
धर्म की परवाह होना
— उत्तम मंगल हैं!

आदर एवं विनम्रता,
संतुष्टि एवं कृतज्ञता,
समय-समय पर धर्म सुनना
— उत्तम मंगल हैं!

क्षमाशीलता, आज्ञाकारिता,
श्रमणों का दर्शन,
समय-समय पर धर्मचर्चा
— उत्तम मंगल हैं!

तप एवं ब्रह्मचर्य,
आर्यसत्यों का दर्शन,
निर्वाण का साक्षात्कार
— उत्तम मंगल हैं!

लोकधर्म छूने पर
चित्त न कंपित होना,
बिना शोक, निर्मल, सुरक्षित होना
— उत्तम मंगल हैं!

इस तरह कार्य कर,
सर्वत्र अपराजित रह,
सर्वत्र भलाई में जो जाएँ
— वह उत्तम मंगल होता हैं!”

( सूत्र समाप्त )


( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से आपका जयमंगल हो!
इस सत्यवचन से आपका जयमंगल हो!
इस सत्यवचन से आपका जयमंगल हो! )


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