यह सूत्र गृहस्थ जीवन के कल्याणकारी उपायों का संकलन है। इसे भिक्षु और गृहस्थ विशेष रूप से मंगलकामनाओं के लिए पाठ करते हैं, जैसे विवाह, गृहप्रवेश, जन्मदिवस और अन्य शुभ अवसरों पर। लेकिन इसका वास्तविक लाभ तभी मिलता है जब बुद्ध द्वारा बताए गए ३८ मंगल गुणों को जीवन में अपनाया जाए। क्योंकि सच्चा मंगल केवल पाठ करने से नहीं, बल्कि इन शिक्षाओं का पालन करने से ही प्राप्त होता है।
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं!
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं!
एतेन सच्चवज्जेन होतु ते जयमङ्गलं! )
Hindi
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
ऐसा मैंने सुना — एक समय भगवान श्रावस्ती में अनाथपिंडक के जेतवन विहार में रह रहे थे। तब देर रात, कोई देवता अत्याधिक कांति से संपूर्ण जेतवन रौशन करते हुए भगवान के पास गया, और पहुँचकर अभिवादन कर एक-ओर खड़ा हुआ। खड़े होकर भगवान के समक्ष गाथाओं का उच्चार किया:
“बहुत से देव एवं मानव,
अपने मंगल का चिंतन करते हैं,
भलाई की आकांक्षा रखते हैं। कृपा कर ‘उत्तम मंगल’ बताएँ?”
(भगवान:)
“मूर्खों से असंगति, विद्वानों से संगति,
पूजनीयों की पूजा — उत्तम मंगल हैं!
सभ्य प्रदेश में निवास, पूर्व पुण्यों का होना,
स्वयं का सही संचालन — उत्तम मंगल है!
विस्तृत ज्ञान, कार्यकौशलता, अनुशासन में सुशिक्षित होना,
वाणी में सुभाषिता — उत्तम मंगल हैं!
माता-पिता को सहारा, पत्नी-संतान का पोषण
कार्यों को न अधूरा छोड़ना — उत्तम मंगल हैं!
दान एवं धर्मचर्या, रिश्तेदारों को सहारा,
निर्दोष कार्य करना — उत्तम मंगल हैं!
पाप टाल, विरत रहना, मद्यपान में संयम,
धर्म की परवाह होना — उत्तम मंगल हैं!
आदर एवं विनम्रता, संतुष्टि एवं कृतज्ञता,
समय-समय पर धर्म सुनना — उत्तम मंगल हैं!
क्षमाशीलता, आज्ञाकारिता, श्रमणों का दर्शन,
समय-समय पर धर्मचर्चा — उत्तम मंगल हैं!
तप एवं ब्रह्मचर्य, आर्यसत्यों का दर्शन,
निर्वाण का साक्षात्कार — उत्तम मंगल हैं!
लोकधर्म छूने पर चित्त न कंपित होना,
बिना शोक, निर्मल, सुरक्षित होना — उत्तम मंगल हैं!
इस तरह कार्य कर, सर्वत्र अपराजित रह,
सर्वत्र भलाई में जो जाएँ — वह उत्तम मंगल होता हैं!”
( सूत्र समाप्त )
( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से आपका जयमंगल हो!
इस सत्यवचन से आपका जयमंगल हो!
इस सत्यवचन से आपका जयमंगल हो! )