पटिच्च समुप्पाद
यह सुत्त कारण-कार्य सिद्धांत को प्रकट करता है, जिससे सम्यकदृष्टि उत्पन्न होती है। जन्म, बुढ़ापा, मृत्यु और दुख के चक्र को समझाने वाला यह उपदेश बौद्ध शिक्षाओं का सार है। जब कोई गृहस्थ मृत्यु को प्राप्त होता है, तो इसका पाठ किया जाता है, जिससे सुनने वालों में अनित्यता की समझ विकसित हो और चित्त विरक्ति, शांति व धर्म में स्थिर हो सके।
Sutra
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
इति इमस्मिं सति इदं होति,
इमस्सुप्पादा इदं उप्पज्जति,
इमस्मिं असति इदं न होति,
इमस्स निरोधा इदं निरुज्झति;
यदिदं –
अविज्जापच्चया सङखारा,
सङखारपच्चया विञ्ञाणं,
विञ्ञाणपच्चया नामरूपं,
नामरूपपच्चया सळायतनं,
सळायतनपच्चया फस्सो,
फस्सपच्चया वेदना,
वेदनापच्चया तण्हा,
तण्हापच्चया उपादानं,
उपादानपच्चया भवो,
भवपच्चया जाति,
जातिपच्चया जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा सम्भवन्ति.
एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स समुदयो होति.
अविज्जाय त्वेव असेसविरागनिरोधा सङखारनिरोधो,
सङखारनिरोधा विञ्ञाणनिरोधो,
विञ्ञाणनिरोधा नामरूपनिरोधो,
नामरूपनिरोधा सळायतननिरोधो,
सळायतननिरोधा फस्सनिरोधो,
फस्सनिरोधा वेदनानिरोधो,
वेदनानिरोधा तण्हानिरोधो,
तण्हानिरोधा उपादाननिरोधो,
उपादाननिरोधा भवनिरोधो,
भवनिरोधा जातिनिरोधो,
जातिनिरोधा जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा निरुज्झन्ति.
एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स निरोधो होती”ति.
सब्बे सङखारा अनिच्चा”ति, यदा पञ्ञाय पस्सति.
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया..
सब्बे सङखारा दुक्खा”ति, यदा पञ्ञाय पस्सति.
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया..
सब्बे धम्मा अनत्ता”ति, यदा पञ्ञाय पस्सति.
अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया..
( सूत्र समाप्त )
( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
एतेन सच्चवज्जेन सोत्थि ते होतु सब्बदा!
एतेन सच्चवज्जेन सब्ब दुक्खा, सब्ब भया,
सब्ब रोगा, सब्ब अन्तरायो, सब्ब उपद्दवा विनस्सतु!
एतेन सच्चवज्जेन होतु नो जयमङ्गलं! )
Hindi
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
जब यह है, तब वह है।
इसके उत्पन्न होने से वह उत्पन्न होने लगता है।
जब यह नहीं है, तब वह भी नहीं है।
इसके अन्त होने से उसका भी अन्त होने लगता है।
अर्थात,
अविद्या की स्थिति में रचनाएँ बनती है।
रचनाओं की स्थिति में चैतन्यता उत्पन्न होती है।
चैतन्य की स्थिति में नाम-रूप बनता है।
नाम-रूप की स्थिति में छह आयाम प्रकट होते है।
छह आयाम के स्थिति में संपर्क होता है।
संपर्क की स्थिति में संवेदना होती है।
संवेदना की स्थिति में तृष्णा उत्पन्न होती है।
तृष्णा की स्थिति में आधार बनता है।
आधार की स्थिति में अस्तित्व पनपता है।
अस्तित्व की स्थिति में जन्म होता है।
जन्म की स्थिति में बुढ़ापा मौत,
शोक, विलाप, दर्द, व्यथा, और निराशा उपस्थित होते हैं।
— इस तरह संपूर्ण दुःख-संग्रह की उत्पत्ति होती है।
अब उसी अविद्या का बिना शेष बचे वैराग्य व निरोध होने पर रचनाएँ रूकती है।
रचनाएँ रुकने पर चैतन्यता ख़त्म होती है।
चैतन्यता न होने पर नाम-रूप नहीं बनता।
नाम-रूप न होने पर पर छह आयाम प्रकट नहीं होते।
छह आयाम न होने पर संपर्क नहीं होता।
संपर्क न होने पर संवेदना नहीं होती।
संवेदना न होने पर तृष्णा उत्पन्न नहीं होती।
तृष्णा न होने पर आधार नहीं बनता।
आधार न होने पर अस्तित्व नहीं पनपता।
अस्तित्व न होने पर जन्म नहीं होता।
जन्म न होने पर बुढ़ापा मौत, शोक विलाप दर्द व्यथा निराशा उपस्थित नहीं होते।
— इस तरह संपूर्ण दुःख-संग्रह ख़त्म हो जाता है।
'सभी रचनाएँ अनित्य हैं',
जो देखें अपनी प्रज्ञा से,
उसका दुःखों से मोहभंग हो,
— यही विशुद्धि मार्ग है।
'सभी रचनाएँ दुःख हैं',
जो देखें अपनी प्रज्ञा से,
उसका दुःखों से मोहभंग हो,
— यही विशुद्धि मार्ग है।
'सभी धर्म अनात्म हैं',
जो देखें अपनी प्रज्ञा से,
उसका दुःखों से मोहभंग हो,
— यही विशुद्धि मार्ग है।
( सूत्र समाप्त )
( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से सबका भला हो!
इस सत्यवचन से सभी दुःख, सभी ख़तरे,
सभी रोग, सभी बाधाएँ, सभी उपद्रव नष्ट हो!
इस सत्यवचन से सभी का जयमंगल हो! )