वैशाली में अकाल, महामारी और बाधाओं से पीड़ित जनता की प्रार्थना पर, बुद्ध ने आनंद थेर से यह सुत्त नगर भर में पाठ करने को कहा, जिससे वातावरण शुद्ध हुआ, भय दूर हुआ और लोग रोगों से मुक्त हुए। आज भी यह सुत्त सुरक्षा, शांति, संकट निवारण और स्थान की पवित्रता के लिए पढ़ा जाता है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
उन भगवान अरहंत सम्यक-सम्बुद्ध को नमन है।
जो भी सत्व यहाँ इकट्ठे हुए हो
भूमि पर या आकाश में
सभी सुखी हो, और जो मैं कहता हूँ
उसे ध्यान से सुनें।
तो, सभी सत्व सतर्क हों। मनुष्यों के प्रति मैत्री करें। दिन-रात वे आपको दान अर्पित करते है। तो पर्वाह करते हुए उनकी रक्षा करें।
जो भी धन-दौलत इस लोक-परलोक में है, स्वर्गों में जो उत्कृष्ट रत्न (ख़ज़ाना) है, वह हमारे लिए तथागत के समान नहीं। बुद्ध में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से आपका भला हो।
क्षय, वैराग्य और उत्कृष्ट अमृत, जिसकी खोज शाक्यमुनि ने समाधि में की: उस धर्म के समान कुछ भी नहीं है। यह भी धर्म में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
श्रेष्ठ बुद्ध ने जिसकी पवित्र कहकर प्रशंसा की वह समाधि तत्काल ज्ञान देनेवाली है उस समाधि के समान कुछ भी नहीं मिलता। यह भी धर्म में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
वह आठ (प्रकार के) पुरुष जिनकी प्रशंसा संत करते है जोड़िया बनाए तो चार होगी वे सुगत के शिष्य दक्षिणा देने योग्य है। उन्हें कुछ भी देने पर महाफलदायी होता है। यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
जो भी निष्ठावान, दृढ़-मनवाले स्वयं को गौतम की शिक्षा में लगाते है, वे ध्येय सिद्ध कर अमृत में डुबकी लगाते है, प्राप्त किये निर्वाण का मुक्त आनंद उठाते है। यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
जैसे इंद्र-कील – पृथ्वी में गड़ा चारों दिशाओं के पवन से प्रकंपित नहीं होता ऐसे व्यक्ति को मैं सत्पुरुष कहता हूँ जो आर्य-सत्य जानकर देखता है। यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
जिसने आर्य-सत्य स्पष्टता से देख लिया गंभीर-प्रज्ञावान द्वारा सु-देषित भले ही उन्हें (श्रोतापन्न) कुछ लापरवाह बना दे, फिर भी वे आठवे जन्म में नहीं पड़ेंगे। यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
दर्शन प्राप्त करते समय वह तीन धर्म (संयोजन) त्यागता हैं स्व-काया-दृष्टि, अनिश्चितता, शील-व्रतों के प्रति कोई आसक्ति। चार अपाय-लोकों से सर्वथा मुक्त होकर छः महा-पाप करने में असमर्थ होता है। (=माता-पिता-अर्हंत हत्या, बुद्ध रक्त-पात, संघ-भेद, अन्य किसी को शास्ता मानना) यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
भले ही वह कोई पाप कर ले काया-वचन या चित्त से उसे छिपा नही सकता, यह असमर्थता मार्ग-दृष्टा के बारे में कही जाती है। यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
जैसे जंगल ऊपर से पल्लवित हो ग्रीष्मकाल के प्रथम मास में; वैसे ही श्रेष्ठ-धर्म (बुद्ध ने) सिखाया निर्वाणगामी, परम-हितकारी। यह भी बुद्ध में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
सर्वश्रेष्ट-जानने वाले सर्वश्रेष्ठ ने (लोगों को) सर्वश्रेष्ट-देकर (उनमें) सर्वश्रेष्ठता लानेवाला अनुत्तर सर्वश्रेष्ठ-धर्म सिखाया। यह भी बुद्ध में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
पुराने क्षीण कर, नए जन्म लेते नहीं। भव प्रति (जिनका) चित्त विरत रहता है, वे – बीज-रहित, वृद्धि की इच्छा-रहित अरहंत यूँ निवृत्त होते है जैसे दीये की लौ। यह भी संघ में उत्कृष्ट रत्न है। इस सत्य से भला हो।
जो भी सत्व यहाँ इकट्ठे हुए हो भूमि पर या आकाश में हम सभी देव-मनुष्य-पूजित तथागत बुद्ध को वंदन करते है। भला हो।
जो भी सत्व यहाँ इकट्ठे हुए हो भूमि पर या आकाश में हम सभी देव-मनुष्य-पूजित तथागत के धर्म को वंदन करते है। भला हो।
जो भी सत्व यहाँ इकट्ठे हुए हो भूमि पर या आकाश में हम सभी देव-मनुष्य-पूजित तथागत के संघ को वंदन करते है। भला हो।
( सूत्र समाप्त )
( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
इस सत्यवचन से सबका भला हो!
इस सत्यवचन से सभी दुःख, सभी ख़तरे,
सभी रोग, सभी बाधाएँ, सभी उपद्रव नष्ट हो!
इस सत्यवचन से सभी का जयमंगल हो! )