नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा-सम्बुद्धस्स

तिरोकुट्ट सुत्त

तिरोकुट्ट सुत्त यह दर्शाता है कि प्रेतलोक के प्राणी अपने जीवित परिजनों से दान और पुण्य की अपेक्षा रखते हैं। इसमें बताया गया है कि वे अदृश्य रूप से घर के आसपास मंडराते हैं, लेकिन यदि उनके नाम पर श्रमणों और ब्राह्मणों को अन्न, जल और दान अर्पित किया जाए, तो वे परोक्ष रूप से इसका लाभ पाते हैं। इससे वे तृप्त और प्रसन्न होते हैं, और कई बार मुक्त भी हो सकते हैं।

इस सुत्त का पाठ पिंडदान और पूर्वजों की स्मृति में किए जाने वाले पुण्य कार्यों के दौरान किया जाता है। यह न केवल मृत पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और करुणा प्रकट करने का एक माध्यम है, बल्कि यह भी सिखाता है कि दान और पुण्य केवल इस लोक तक सीमित नहीं हैं, बल्कि परलोक में भी कल्याणकारी होते हैं, जिससे जीवित और मृत — दोनों लाभान्वित होते हैं।

📢 तिरोकुट्ट सुत्तपाठ

सूत्र पाठ

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स।

तिरोकुट्टेसु तिट्ठन्ति, सन्धिसिङघाटकेसु च।
द्वारबाहासु तिट्ठन्ति, आगन्त्वान सकं घरं।
पहूते अन्नपानम्हि, खज्जभोज्जे उपट्ठिते
न तेसं कोचि सरति, सत्तानं कम्मपच्चया।

एवं ददन्ति ञातीनं, ये होन्ति अनुकम्पका
सुचिं पणीतं कालेन, कप्पियं पानभोजनं
इदं वो ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो।

ते च तत्थ समागन्त्वा, ञातिपेता समागता
पहूते अन्नपानम्हि, सक्कच्चं अनुमोदरे
चिरं जीवन्तु नो ञाती, येसं हेतु लभामसे।

अम्हाकञ्च कता पूजा, दायका च अनिप्फला।
न हि तत्थ कसि अत्थि, गोरक्खेत्थ न विज्जति
वणिज्जा तादिसी नत्थि, हिरञ्ञेन कया कयं।
इतो दिन्नेन यापेन्ति, पेता कालङकता तहिं।

उन्नमे उदकं वुट्ठं, यथा निन्नं पवत्तत
एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति
यथा वारिवहा पूरा, परिपूरेन्ति सागरं,
एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति।

अदासि मे अकासि मे, ञातिमित्ता सखा च मे
पेतानं दक्खिणं दज्जा, पुब्बे कतमनुस्सरं,
न हि रुण्णं वा सोको वा, या चञ्ञा परिदेवना।
न तं पेतानमत्थाय, एवं तिट्ठन्ति ञातयो,

अयञ्च खो दक्खिणा दिन्ना, सङघम्हि सुप्पतिट्ठिता,
दीघरत्तं हितायस्स, ठानसो उपकप्पति।
सो ञातिधम्मो च अयं निदस्सितो,
पेतान पूजा च कता उळारा।
बलञ्च भिक्खूनमनुप्पदिन्नं,
तुम्हेहि पुञ्ञं पसुतं अनप्पकन्ति।

( सूत्र समाप्त )


( ऐच्छिक सत्यक्रिया और अनुमोदन:
एतेन सच्चवज्जेन सोत्थि ते होतु सब्बदा!
एतेन सच्चवज्जेन सब्ब दुक्खा, सब्ब भया,
सब्ब रोगा, सब्ब अन्तरायो, सब्ब उपद्दवा विनस्सतु!
एतेन सच्चवज्जेन होतु नो जयमङ्गलं! )


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