‘मध्यम निकाय’ पालि साहित्य का अत्यंत महत्वपूर्ण संग्रह है, जिसमें मध्यम लंबाई के कुल १५२ सूत्र शामिल हैं। यह संग्रह साधकों के बीच सबसे लोकप्रिय और उपयोगी माना जाता है। मध्यम निकाय के सूत्र स्पष्ट, संक्षिप्त और विषय-वस्तु पर केंद्रित रहते हैं। इसे पञ्चनिकाय में सबसे रोचक और ज्ञानवर्धक निकाय माना जा सकता है।
इनमें भगवान बुद्ध द्वारा दी गई विभिन्न साधना-संबंधी शिक्षाएँ सरल और सीधी भाषा में प्रस्तुत की गई हैं। कुछ सूत्रों की देशना प्रसिद्ध भिक्षुओं द्वारा दी गई है, और कई में उनके बीच हुई गहन चर्चाएँ भी शामिल हैं। कुछ सूत्रों में जातक कथाएँ भी देखने को मिलती हैं।
उन्हें तीन वर्गों में रखा गया है — मूलपण्णास | मज्झिमपण्णास | उपरिपण्णास
इस निकाय के पहले ही धमाकेदार सूत्र को सुनकर कोई खुश नहीं हुआ! “क्या ब्रह्मांड का कोई मूल या जड़ है?” भगवान का उत्तर!
सभी आस्रवों को खत्म करने के कुल सात उपाय!
भगवान बुद्ध के सच्चे वारिस कौन हैं? भगवान के द्वारा बताने पर सारिपुत्त भंते भी उसे और उजागर करते हैं।
बोधिसत्व ने जंगल में अकेले रहकर डर और आतंक का सामना करते हुए संबोधि कैसे पायी?
सारिपुत्त भंते यादगार उपमाओं के साथ चित्त के दाग-धब्बों का रहस्य खोलते हैं।
“अपनी इच्छा-आकांक्षाओं को पूरा कैसे करें?” भगवान बताते हैं।
मैले चित्त को धोना किसी मैले वस्त्र को धोने के समान ही है। बस जान लें कि “मैल” क्या हैं।
भगवान बताते हैं कि साधक को, सुख और शान्ति में रमने के बजाय, अपने क्लेशों को ‘घिस-घिसकर मिटाने’ की तपश्चर्या करनी चाहिए।
सारिपुत्त भंते सम्यक दृष्टि को अनोखे अंदाज में परिभाषित करते हैं।
इस लोकप्रिय सूत्र में स्मृति स्थापित करने की विधि विस्तार से बतायी गयी है।
भगवान प्रेरित करते हैं कि उनके शिष्य जाकर दूसरे संन्यासियों के सामने दहाड़े।
एक पूर्व शिष्य द्वारा निंदा होने पर, भगवान ऐसा उत्तर देते हैं कि सुनने वाले के रोंगटे खड़े हो जाए।
परधर्मी घुमक्कड़ों को लगता हैं कि उनका और बुद्ध का धर्म एक जैसा ही है। तब, भगवान ऐसा धर्म बताते हैं, जो उनके लिए ‘आउट ऑफ सिलेबस’ हो।
भगवान अपने चचेरे भाई को कामुकता के बारे में बताते हैं। साथ ही, जैन साधकों से हुए वार्तालाप का उल्लेख भी करते हैं।
महामोग्गल्लान भंते अपने भिक्षु साथियों को दुर्वचो और सुवचो पर व्यावहारिक मार्गदर्शन देते हैं।
यहाँ भगवान चित्त की बंजरता और उसके जंजीरों के बारे में अवगत कराते हैं।
यहाँ भगवान एक अत्यंत व्यावहारिक बात बताते हैं — हमें कहाँ रहना चाहिए, और कहाँ नहीं।
भगवान के मुख से निकला प्रपंच पर एक अत्यंत सारगर्भित और संक्षिप्त धर्म। लेकिन उसका अर्थ कौन बताए?
अपने विचारों से कैसे निपटें? और उन्हें लाँघकर संबोधि कैसे पाएँ? प्रस्तुत हैं, बोधिसत्व का व्यावहारिक तरीका।
अपने बुरे विचारों को अच्छाई की तरफ कैसे मोड़ें? यादगार उपमाओं के साथ पाँच तरीके सुनें।
आलोचना कैसे झेलें? भगवान जीवंत और यादगार उपमाओं के साथ बताते हैं।
एक भिक्षु अपनी पापी धारणा बनाता है। तब भगवान प्रसिद्ध उपमाओं के साथ अत्यंत गहरा धर्म बताते हैं।
एक देवता आकर भिक्षु को रहस्यमयी पहेलियाँ देता है, जिसका समाधान भगवान करते हैं।
दो प्रतिभाशाली अरहंत भिक्षु, आपस में धर्मचर्चा करते हुए, विशुद्धिमार्ग के चरणों को उजागर करते हैं।
मार के चारे से कौन-से साधक बच सकते हैं? हिरणों की उपमा से भगवान समझाते हैं।
दुनिया के सभी लोग, दरअसल, दो तरह की खोज में जुटे हैं। भगवान विस्तार से स्वयं की खोज भी बताते हैं।
क्या हमें श्रद्धा से तुरंत मान लेना चाहिए? भगवान यहाँ उपमा देकर हमें सावधानी बरतने की सलाह देते हैं।
सारिपुत्त भंते धर्म के तमाम प्रमुख सिद्धान्तों को चार आर्य सत्यों में पिरो देते हैं।
भगवान ब्रह्मचर्य का सार बताते हैं, साथ ही उसके बाहरी छिलकों को भी उजागर करते हैं।
यह पिछले सूत्र की तरह ही ब्रह्मचर्य का सार बताता है, लेकिन अंतिम भाग में मिलावट नजर आती है।
कलह के समय, भगवान उन तीन भिक्षुओं से मिलते हैं जो स्नेहपूर्वक वन में साधनारत हैं।
‘किस तरह का भिक्षु शानदार गोसिङ्ग वन की शोभा होगा?’ प्रसिद्ध भिक्षुओं का अलग-अलग उत्तर।
यहाँ भगवान एक चरवाहे के गुणों की उपमा देकर भिक्षुओं को सारगर्भित धर्म बताते हैं।
यहाँ भगवान एक यादगार उपमा के साथ हमें पार आने के लिए पुकारते हैं।
एक प्रसिद्ध अहंकारी बहसबाज, भगवान से सरेआम वाद-विवाद में भिड़ता है।
वही प्रसिद्ध अहंकारी बहसबाज, इस बार अकेले में भगवान से वाद-विवाद करता है।
भगवान से धर्म सुनने पर भी देवराज इन्द्र मदहोश रहता है। तब महामोग्गल्लान भंते उसके रोंगटे खड़े कर उसे होश दिलाते हैं।
एक भिक्षु अपने दृष्टिकोण पर अड़ा हुआ है। तब भगवान, संवादात्मक शैली में, प्रतित्य समुत्पाद के सिद्धांत पर प्रतिप्रश्न करते हुए भिक्षुओं को गहरा अर्थ बताते हैं।
भगवान श्रमण को श्रमण बनाने वाले धर्म, और ब्राह्मण को ब्राह्मण बनाने वाले धर्म को उजागर करते हैं।
श्रमण्यता के अनेक अनुचित व्रत और मार्ग हैं। भगवान उनकी निरर्थकता का खुलासा कर उचित मार्ग दिखाते हैं।
भगवान साल गाँव के लोगों को ‘सम’ और ‘विषम’ आचरण के माध्यम से सद्गति और दुर्गति के कारणों को स्पष्ट करते हैं।
यह सूत्र पिछले सूत्र के समान ही है। यहाँ भी भगवान गाँव के लोगों को ‘सम’ और ‘विषम’ आचरण के माध्यम से सद्गति और दुर्गति के कारणों को स्पष्ट करते हैं।
यहाँ दो भिक्षुओं के सवाल-जवाब से धर्म के गहरे पहलू एक खिलते हुए फूल की तरह खुलते हैं।
यहाँ उपासक के गहरे सवालों का उत्तर एक प्रसिद्ध भिक्षुणी देती हैं। और क्या ही लाजवाब उत्तर देती हैं!
भगवान चार प्रकार के धर्ममार्ग बताते हैं, जिनसे वर्तमान का अनुभव और भविष्य के फल भिन्न होते हैं।
भगवान चार धर्ममार्गों का वर्णन करते हैं, प्रत्येक के लिए यादगार उपमाओं का प्रयोग करते हुए।
साधक को गुरु की कड़ी छानबीन करनी चाहिए और श्रद्धा रखने से पहले आँख और कान खुले रखने चाहिए। भगवान बताते हैं कि यह कैसे करना है।
कौशाम्बी के झगड़ालू भिक्षुओं को भगवान स्नेहभाव और एकता का महत्व समझाते हैं।
एक हैरतअंगेज सूत्र, जिसमें भगवान जाकर ब्रह्मा की दृष्टि सुधारने का प्रयास करते हैं।
मार महामोग्गल्लान भंते को परेशान करता है। तब वे उसे अपनी पूर्वजन्म कथा सुनाते हैं, जिसमें वे स्वयं मार थे।
“मानव स्वभाव अनिश्चित है, जबकि पशु सीधे होते हैं।” इस पर भगवान चार प्रकार के व्यक्तियों का वर्णन करते हैं।
भगवान के परिनिर्वाण के पश्चात एक गृहस्थ अमृतद्वार ढूँढ रहा था। आनन्द भंते ने उसे ग्यारह अमृतद्वार दिखा दिए।
जब भगवान को पीठ दर्द हुआ, तब भंते आनन्द ने उपदेश की जिम्मेदारी संभाली और शाक्यों को साधना मार्ग का वर्णन किया।
एक गृहस्थ जब स्वयं को दुनियादारी से अलग समझता है, तब भगवान उसे सच्चे अर्थ में दुनियादारी से कटने का मार्ग बताते हैं।
क्या बुद्ध अपने लिए मारे गए प्राणी का मांस खाते हैं? भगवान का स्पष्ट उत्तर!
एक निगण्ठ उपासक वादविवाद के लिए भगवान के पास जाता है, और भगवान के जादू से दीवाना होकर लौटता है।
प्राचीन भारत के अनोखे संन्यासी, जो कुत्ते और गाय का व्रत रखते हैं, भगवान से उसका फल पूछते हैं।
अभय राजकुमार को भगवान को दुविधा में डालकर उनका खण्डन करने भेजा जाता है।
दो लोग अनुभूतियों की गिनती में उलझे रहते हैं, वहीं भगवान उनसे आगे बढ़कर सुखों के विविध प्रकार गिनाते हैं।
यदि आपको किसी पर श्रद्धा न हो तो तर्क का आधार लेकर सुरक्षित दाँव लगाना चाहिए।
भगवान उपमाओं के माध्यम से अपने बालक पुत्र को कर्म सुधारने का पहला पाठ पढ़ाते हैं।
भगवान अपने युवा पुत्र राहुल को विविध प्रकार की साधना करने के लिए प्रेरित करते हैं।
एक भिक्षु भगवान को धमकी देता है — दार्शनिक उत्तर न मिले तो संन्यास छोड़ देगा।
भगवान निचली पाँच बेड़ियों को तोड़कर अनागामी अवस्था पाने का मार्ग उजागर करते हैं?
भगवान भिक्षुओं को एक नया नियम पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन एक भिक्षु साफ मना कर देता है।
भगवान का उपकार अनुभव करने वाले भिक्षु को भगवान बंधन तोड़ने और उपाधियों से परे जाने का धर्म सिखाते हैं।
भगवान शोर मचाते भिक्षुओं को निकाल देते हैं, लेकिन उन्हें स्वीकारने पर चार खतरे बताते हैं।
भगवान प्रसिद्ध नवभिक्षुओं को उनके आध्यात्मिक कर्तव्यों की स्पष्टता देते हुए अपनी घोषणाओं का कारण बताते हैं।
जब एक असभ्य अरण्यवासी भिक्षु संघ में आया, तो सारिपुत्त भंते ने आचार और साधना का वास्तविक अर्थ समझाया।
एक गाँव के दो हठी भिक्षु — जिन्हें भगवान पहले सहमत करते हैं, फिर करुणा में लिपटी फटकार देते हैं।
इस छोटे सूत्र में एक संन्यासी भगवान से उनके “सर्वज्ञ और सर्वदर्शी” होने के दावे के बारे में पूछता है।
वह संन्यासी अब भगवान से दुनिया की दस प्रमुख दार्शनिक मान्यताओं के बारे में प्रश्न करता है।
वह संन्यासी अब अपनी शंका का अंतिम समाधान पूछता है और भिक्षुत्व स्वीकार करता है।
इस प्रसिद्ध सूत्र में सारिपुत्त भंते को अरहंत फल प्राप्त हुआ, जबकि उनके घुमक्कड़ भांजे में धर्मचक्षु उत्पन्न हुआ।
भगवान को ‘भ्रूण हत्यारा’ कहने वाला घुमक्कड़, भगवान से मिलकर भिक्षुत्व स्वीकार कर अरहंत बनता है।
आनन्द भंते घुमक्कड़ गुरु से चर्चा करते हैं, तो वह अपने सभी शिष्यों को भिक्षु बनने भेज देते हैं।
विभिन्न पंथों के बीच आपसी संवाद में सभी गुरुओं और उनके शिष्यों के असली चेहरे उजागर होते हैं। भगवान बुद्ध के भी।
एक घुमक्कड़ भगवान के उपासक को “अजेय श्रमण” के चार गुण बताता है, पर भगवान उसका खंडन कर दस गुण बताते हैं।
इस रोचक और मजेदार चर्चा से घुमक्कड़ों का गुरु भिक्षु बनने का मन बनाता है, लेकिन उसके शिष्य उसे रोक देते हैं।
पिछले सूत्र के घुमक्कड़ सकुलुदायी के आचार्य इस बार अपनी बात की रक्षा करने आते हैं, लेकिन भगवान का शिष्य बन जाते हैं।
भगवान अपने पुराने मित्र घटिकार कुम्हार की प्रेरणादायी और भावनात्मक जातक कथा सुनाते हैं।
एक नवयुवक, प्रव्रज्या की अनुमति पाने के लिए माता-पिता से संघर्ष करता है, और अरहंत बनकर लौटकर धूम मचाता है।
भगवान की जातक कथा, जिसमें वे ऐसी कल्याणकारी प्रथा स्थापित करते हैं, जो इसके अनुसरणकर्ताओं को ब्रह्मलोक में सद्गति प्रदान करती है।
मथुरा का राजा ब्राह्मणों की स्व-घोषित श्रेष्ठता पर भंते की राय पूछते हैं, और भंते बेझिझक उत्तर देते हैं।
राजकुमार मानता है कि परमसुख कठिन तप से मिलता है, सुखद मार्ग से नहीं! इसी पर भगवान का उत्तर।